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अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (12 मई) पर विशेष : नर्सिंग का पेशा दुनिया भर में भरोसेमंद…

अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (12 मई) पर विशेष : नर्सिंग का पेशा दुनिया भर में भरोसेमंद…

-सत्यपाल वशिष्ठ-

हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस 12 मई को पूरे विश्व में मनाया जाता है। बहुत से देशों में 6 मई से 12 मई तक नर्सिस सप्ताह मनाया जाता है। पूरे सप्ताह सेमिनार और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है जिसमें अंतरराष्ट्रीय/राष्ट्रीय स्तरीय ज्ञान का आदान-प्रदान किया जाता है जो नर्सिस की कार्यशैली में गुणवत्ता लाने में सहायक होता है। हर वर्ष नए थीम के साथ यह दिवस मनाया जाता है जो नर्सिंग पेशे में गुणवत्ता लाने के लिए प्रेरित करता है। इसी कड़ी में वर्ष 2024 का थीम है ‘हमारी नर्सें, हमारे भविष्य, रोगी देखभाल की आर्थिक शक्ति’। नर्सें लोगों की सेहत को बनाए रखने में नींव का पत्थर होते हुए अपने आप आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से हमेशा संघर्षशील हैं। इसलिए इस वर्ष के थीम में प्रमुखता से नर्सिंग पेशे/क्षेत्र में रणनीतिक निवेश के ऊपर जोर देता है। नर्स किसी भी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी। वे चिकित्सा प्रतिष्ठान में प्रवेश करने से लेकर बाहर निकलने तक अपने मरीजों की भलाई के लिए जिम्मेदार हैं। वे चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए डॉक्टरों के साथ सांझेदारी करती हैं। वे मरीजों के स्वास्थ्य और महत्वपूर्ण संकेतों की निगरानी करती हैं। इस वजह से नर्सिंग का पेशा दुनिया भर में सबसे भरोसेमंद पेशों में से एक पेशा बन गया है।

पहले इसे एक मामूली पेशे के रूप में देखा जाता था, परंतु फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने नर्सिंग को एक संगठित पेशा बनाया। 1860 में पहला आधिकारिक नर्स प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाकर और नर्सों के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में चिकित्सा और देखभाल के आधुनिक विचारों को एकीकृत करके नर्सिंग पेशे की स्थिति को ऊंचा उठाने में मदद की। नाइटिंगेल ने देखभाल के मानक स्थापित किए। पूरे विश्व में नर्सिंग क्षेत्र में क्या नए विकास/अनुसंधान हुए, उन सबके अवलोकन के लिए 1965 में दुनिया भर में 20 मिलियन से अधिक नर्सों का प्रतिनिधित्व करने वाले 130 से अधिक राष्ट्रीय नर्सिस संघों का एक संघ, इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सिंग ने 12 मई को पहली बार फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन के उपलक्ष्य पर नर्सों का जश्न मनाया। 1974 में आधिकारिक तौर पर इसे अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस नाम दिया गया था। इस दिवस का उद्देश्य एक स्वस्थ और फिट समाज को बनाए रखने में नर्सिस की कड़ी मेहनत को पहचानना और उसका जश्न मनाना है। नर्सिंग स्टाफ के कई कार्यस्थल मुद्दों और चिंताओं पर ध्यान आकर्षित करने में मदद करता है। यह एक व्यवहार्य और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण करियर के रूप में नर्सिंग के बारे में जागरूकता बढ़ाता है। क्योंकि एक अनुमान के अनुसार 2030 तक सारे संसार में 18 मिलियन स्वास्थ्य कर्मचारी कम होंगे, इसके लिए अधिक भर्ती, प्रशिक्षण आदि के लिए ठोस कार्रवाई पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में नर्सिंग स्टाफ के महत्व का असली पता हमें कोविड-19 और कोविड-20 में लगा, जब नर्सिस ने अपने आप को अग्रिम पंक्ति की कार्यकर्ता बनकर खुद को आग से खेलने के लिए तैयार किया। अपने परिवार को दूर रखा, परिवार के डर को कम करने के लिए जानबूझकर जानकारी छिपाई। पीपीई किट के साथ 12-12 घंटे मौत के साये में काम किया। महामारी की पहली लहर के दौरान आईसीएन ने दुनिया भर में नर्सिस के बीच मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों में 60 प्रतिशत से 80 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की। यह अपर्याप्त जनशक्ति के कारण नर्सिस को अधिक काम के दबाव के कारण हुआ। सारे विश्व में नर्सिस की 10 मिलियन तक की कमी है। 2018 में एक अध्ययन के अनुसार जिन रोगियों को गहन देखभाल की आवश्यकता होती है, वे अपना 86 प्रतिशत से 88 प्रतिशत समय नर्स के साथ बिताते हैं। नर्सिंग एक विविध क्षेत्र है।

अजन्मे बच्चे की देखभाल से लेकर जीवन के अंत तक देखभाल करने तक नर्सें प्रतिदिन जीवन और मृत्यु के मामलों को निपटाने के लिए उच्च तनाव वाले वातावरण में काम करती हैं। 2006 में मेडसर्ग नर्सिंग द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि एक नर्स एक औसत शिफ्ट के दौरान 8 किलोमीटर चलती है। नर्सें कई रोगियों की देखभाल की पहली पंक्ति होती हैं, इसलिए उन्हें अक्सर रोगियों या उनके परिवारों की ओर से हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है। नर्सें अपना जीवन दाव पर लगाकर उन लोगों की देखभाल करती हैं जो संक्रामक रोगों के कारण बीमार होते हैं। भारत में 35.14 लाख रजिस्टर्ड नर्सिस हैं, जिसका अनुपात 2.06 नर्सिस प्रति 1000 व्यक्ति बनता है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक, जो 3 नर्सिस प्रति हजार व्यक्ति है, से काफी नीचे है। भारतवर्ष में इस अनुपात के कम होने का कारण यह भी है कि अच्छे वेतन के लिए भारत से नर्सिस का पलायन दूसरे देशों को हो रहा है। सरकार को इस दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है। हिमाचल प्रदेश में यह अनुपात और निचले स्तर पर है। 9 जून 2023 के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल के स्वास्थ्य विभाग में सिस्टर ट्यूटर के 29 पद, वार्ड सिस्टर और नर्सिंग सिस्टर के 27 पद, स्टाफ नर्स के 647 पद, मेल हेल्थ वर्कर के 1846 और फीमेल हेल्थ वर्कर के 1091 पद खाली हैं। हिमाचल की जनसंख्या इस समय 6864602 है। हिमाचल की जनसंख्या बढ़ रही है, उसके अनुरूप स्वीकृत पदों को बढ़ाने की सख्त जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में ज्यादातर इलाके ग्रामीण एवं दुर्गम हैं। यहां नर्सिस ही महत्वपूर्ण रोल अदा करती हैं। नर्सिस के कार्य में गुणवत्ता लाने के लिए तथा कामकाजी परिस्थितियों में सुधार के लिए एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली को लागू करने की आवश्यकता है। इसके लिए हर महीने खंड स्तर, तहसील स्तर और जिला स्तर तथा अन्य संस्थानों के स्तर पर नर्सिस के साथ सभा हो तथा इनकी मांगों का मौके पर ही निपटारा हो।

नर्सिस को कार्य शिफ्टों में करना पड़ता है। इनकी सुविधा के लिए आवास अस्पताल या डिस्पेंसरी के परिसर में ही हो ताकि वे अपने बच्चों तथा बुजुर्गों को अपनी ड्यूटी के साथ-साथ देख सकंे। नर्सिस की कोई भी भर्ती आउटसोर्सिंग पर नहीं होनी चाहिए। निजी स्वास्थ्य संस्थानों में नर्सिस को वेतन कम दिया जाता है तथा काम ज्यादा लिया जाता है। इसके लिए सरकार को अधिनियम बनाकर इनको सख्ती से लागू करना चाहिए ताकि नर्सिस को आर्थिक शोषण से बचाया जा सके। नर्सिस के लिए समय-समय पर योग सत्र लगाने चाहिएं ताकि उनको काम के बोझ से जो मानसिक तनाव है, उससे राहत दिलाई जा सके।

सियासी मियार की रीपोर्ट