Sunday , November 23 2025

कविता : ‘शब्दों की पवित्रता के बारे में’..

कविता : ‘शब्दों की पवित्रता के बारे में’..

-चंद्रकांत देवताले-

रोटी सेंकती पत्नी से हँसकर कहा मैंने
अगला फुलका बिल्कुल चंद्रमा की तरह बेदाग़ हो तो जानूँ
उसने याद दिलाया बेदाग़ नहीं होता कभी चंद्रमा

तो शब्दों की पवित्रता के बारे में सोचने लगा मैं
क्या शब्द रह सकते हैं प्रसन्न या उदास केवल अपने से
वह बोली चकोटी पर पड़ी कच्ची रोटी को दिखाते
यह है चंद्रमा जैसी दे दूँ इसे क्या बिना ही आँच दिखाए

अवकाश में रहते हैं शब्द शब्दकोश में टँगे नंगे अस्थिपंजर
शायद यही है पवित्रता शब्दों की
अपने अनुभव से हम नष्ट करते हैं कौमार्य शब्दों का
तब वे दहकते हैं और साबित होते हैं प्यार और आक्रमण करने लायक़

मैंने कहा सेंक दो रोटी तुम बढ़िया कड़क चुंदड़ी वाली
नहीं चाहिए मुझको चंद्रमा जैसी।