इमारतें मनुष्य के मानसिक दृष्टिकोण को प्रभावित करती हैं/.
-ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय-

आपका घर कैसा बना है, इसका असर आपके मानसिक दृष्टिकोण पर भी पड़ता है। घर का वास्तु ठीक न होने पर इसका असर आपकी मनोदशा पर तो पड़ता ही है, साथ में आपको इससे पूरा लाभ भी नहीं मिल पाता। आपके हर काम बिगड़ने लगते हैं और बाधाएं आने लगती हैं। आइए, जानते हैं इमारतों का मनुष्य की मनोस्थिति पर क्या असर पड़ता है।
वास्तुदोष से बिगड़ती है मानसिक स्थिति
यदि भवन, दुकान अथवा कार्यालय वास्तु शास्त्र के अनुसार निर्मित है, तो प्रकृति की सभी शक्तियां व्यक्ति का सहयोग करती हैं। ग्रहदशा भी अनुकूल होने पर वास्तु सम्मत परिसर मनुष्य को मिलने वाले लाभ में कई गुना वृद्धि करते हैं। व्यक्ति की प्रगति के पीछे कई मानक है, जिसमें वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र की अहम भूमिका मानी गई है। वास्तु तथा ग्रहदशा, दोनों मानकों में एक मानक विपरीत होने पर व्यक्ति को अधूरा लाभ मिलता है।
वास्तु विज्ञान से जुड़ा है
क्या आपको पता है कि इमारतें हमारे मानसिक दृष्टिकोण को प्रभावित करती हैं। जिस घर अथवा जिस कार्यालय में हम काम करते हैं, उस जगह का वास्तु एवं इमारत की बनावट जिस प्रकार की होगी, उसी के अनुरूप उसका प्रभाव वहां पर रहने अथवा कार्य करने वालों के मन, मस्तिष्क पर पड़ता है। सफलता और असफलता, सब कुछ मनुष्य की सोच पर निर्भर करती है, इसलिए ग्रह, नक्षत्रों की गति एवं भवन का वास्तु व्यक्ति की निर्णय शक्ति को प्रभावित करता है। जैसे-जैसे ग्रह, नक्षत्र बदलते जाते हैं, उसी प्रकार व्यक्ति की सोच बदलने लगती है और अगर व्यक्ति के निवास स्थान अथवा कार्यालय में वास्तुदोष है, तो खराब समय में अथवा शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या के अन्तराल में शनि निर्बल होने पर व्यक्ति को नाना प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वास्तु एक ऐसा विज्ञान है, जो व्यक्ति को समृद्धि और मानसिक शांति की तरफ ले जाता है। यही कारण है कि प्राचीनकाल से लेकर आज के आधुनिक परिवेश में वास्तुशास्त्र की प्रासंगिकता ज्यों की त्यों है।
इस वास्तुदोष के कारण हुई महाभारत
वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन के बीचों-बीच ब्रह्म स्थान होता है, जहां पर तालाब आदि जल का स्थान नहीं होना चाहिए, ऐसा निर्माण वास्तुदोष की श्रेणी में आता है। वास्तु शास्त्रियों के मतानुसार इसी वास्तुदोष ने प्राचीन काल में महाभारत कराई है, सब जानते हैं, महाभारत के संग्राम का बीज, भवन का वास्तुदोष था, जहां पर ब्रह्म स्थान पर बीचों-बीच तालाब बनाया गया था, जिसमें भ्रम के कारण दुर्योधन गिर गया था और द्रोपदी ने हंसकर उसका अपमान किया, वहीं अपमान आगे जाकर महाभारत के संग्राम में परिवर्तित हो गया। जो भवन वास्तु के सिद्धांतों पर शत-प्रतिशत सही है, उसमें निवास करने वाले भवन स्वामी, मानसिक दृष्टि से बहुत ही उन्नत होते हैं एवं भवन स्वामी की ग्रहदशा सही होने पर वास्तु शास्त्र दोगुना लाभ देता है। जिन लोगों के घर, दुकान अथवा कार्यालय वास्तु के सिद्धांतों के ठीक विपरीत होते हैं, उनके यहां कलह, धनहानि, मानसिक चिन्ताओं का सार्माज्य देखा गया है। धन जिस प्रकार शीघ्रता से आता है, वास्तु दोष के कारण उसी प्रकार से गायब भी हो जाता है। प्रकृति की सभी शक्तियों का सामुहिक नाम है वास्तु। वास्तुशास्त्र पंचतत्व, अग्नि, वायु, पृथ्वी, जल और आकाश सहित नवग्रहों की शक्ति पर आधारित है। मनुष्य का शरीर पंचतत्वों से बना है, इन्हीं पांच तत्वों में किसी एक तत्व की अल्पता व्यक्ति को शारीरिक और मनासिक रूप से प्रभावित करती है। इसलिए जब शरीर में रोग आदि उत्पन्न हो जाता है, तो ग्रहदशा के उपचार के साथ वास्तु परिवर्तन कराया जाता है, ताकि रोगी को शीघ्र आराम व लाभ मिल सके। वास्तु शास्त्र प्रकृति की शक्तियों का समन्वय है, आपके भवन के अन्दर पंचतत्वों के सामांजस्य का संक्षिप्त रूप ही वास्तु शास्त्र है।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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