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सरकार नई, चेहरे पुराने..

सरकार नई, चेहरे पुराने..

केंद्रीय मंत्रिपरिषद के स्पष्ट संकेत हैं कि यह निरंतरता की ही सरकार है। भाजपा के अल्पमत का तनाव और गठबंधन के दबावों, सवालों की जरा-सी भी चिंता प्रधानमंत्री मोदी को नहीं है। कार्यभार संभालने के बाद प्रधानमंत्री ने प्रथम हस्ताक्षर ‘किसान सम्मान निधि’ वाली फाइल पर किए, तो किसी भी मंत्री को जानकारी नहीं थी। प्रधानमंत्री ने 9.30 करोड़ किसानों के लिए 20,000 करोड़ रुपए जारी किए। किसानों की 17वीं किस्त दी गई। शाम को कैबिनेट की प्रथम बैठक में ही गरीबों के लिए ऐसे 3 करोड़ आवास बनाने की योजना को स्वीकृति दी गई, जिनमें शौचालय, एलपीजी, नल और बिजली के कनेक्शन की सुविधाएं भी होंगी। ये मकान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बनाए जाएंगे। मोदी सरकार अपने 10 साला कालखंड में ऐसे 4.21 करोड़ मकान बनाकर बांट चुकी है। सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि पिछली सरकार में जो मंत्री रक्षा, गृह, सडक़ परिवहन, विदेश, वित्त, शिक्षा, रेल, पेट्रोलियम, वाणिज्य-उद्योग, कानून और पर्यावरण आदि मंत्रालयों के प्रभारी थे, उन्हीं चेहरों को यथावत कार्यभार सौंपा गया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा 2014 की मोदी सरकार में ही स्वास्थ्य मंत्री थे। अब 2024 की कैबिनेट में भी वह स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया, सर्बानंद सोनोवाल, किरेन रिजीजू, प्रह्लाद जोशी, मनसुख मांडविया, गजेन्द्र शेखावत, जी किशन रेड्डी आदि पुराने मंत्री हैं, जिन्हें नए मंत्रालय के साथ नई सरकार का हिस्सा बनाया गया है। कई राज्यमंत्रियों के भी मंत्रालय वही पुराने रखे गए हैं।

सबसे संवेदनशील सुरक्षा की कैबिनेट कमेटी में भी कोई फेरबदल नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी पर तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी), जनता दल-यू, शिवसेना, एनसीपी सरीखे सहयोगी दलों का कोई दबाव और तनाव दीखता नहीं है। उन्हें प्रधानमंत्री ने अपने विशेषाधिकार के अनुसार मंत्रालय सौंपे हैं। सरकार में प्रधानमंत्री समेत 72 मंत्री हैं, जिनमें से 61 मंत्री भाजपा के हैं। हिंदी भाषी क्षेत्रों से 36 मंत्री और दक्षिण भारत से 13 मंत्री लिए गए हैं। महिला मंत्रियों की संख्या 7 है। शायद इसी आंकड़े की परंपरा रही है। मौजूदा मंत्रिपरिषद की औसत आयु 58.7 साल है, जबकि 2019 में यही 60 साल के कुछ ऊपर थी। हालांकि कैबिनेट में 7 पूर्व मुख्यमंत्री हैं, लेकिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को ऊर्जा, आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय दिए गए हैं और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया है। रेल के साथ-साथ सूचना-प्रसारण मंत्रालय भी अश्विनी वैष्णव को दिया गया है। वह प्रौद्योगिकी सम्पन्न मंत्री हैं, सूचनाओं को दबाने या बांटने के खेल से अनभिज्ञ हैं, लिहाजा सूचना मंत्रालय दिए जाने पर आश्चर्य होता है। संभव है कि जब कैबिनेट का विस्तार या फेरबदल होगा, तो यह मंत्रालय किसी और मंत्री को दिया जा सकता है। इसी तरह ऊर्जा मंत्रालय भी तकनीक और विज्ञान पर आधारित मंत्रालय है। खट्टर के संदर्भ में तालमेल मुश्किल हो सकता है।

बहरहाल शिवराज सिंह चौहान पर इतना बोझ, दायित्व डाल दिया गया है, जितना उन्होंने मुख्यमंत्री के 16.5 सालों के दौरान महसूस नहीं किया होगा। किसान और गांव परस्पर पूरक हैं। नए मंत्री के सामने जलता और उबलता-सा सवाल होगा कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी का क्या किया जाए? किसानों की आय कब तक और किस तरह दोगुनी की जा सकती है? कृषि वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री एमएसपी की कानूनी गारंटी के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन एमएसपी में निरंतर बढ़ोतरी के समर्थक हैं। जब किसान आंदोलन समाप्त किया गया था, तब प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को आश्वस्त किया था कि एमएसपी के कानूनी दर्जे के बारे में जरूर कुछ किया जाएगा। एक कमेटी भी बनाई गई थी, लेकिन आज तक कोई निष्कर्ष सामने नहीं है। आम चुनाव में किसानों के तनाव, गुस्से और संकट ने कई राज्यों में भाजपा की पराजय की जमीन तैयार की थी, लिहाजा यह मुद्दा प्राथमिकता का है। मोदी सरकार के लिए गरीबी, बेरोजगारी, निम्न आय वर्ग की चिंताएं भी प्राथमिकता पर होनी चाहिए। भाजपा हिंदुत्व के साथ दलितों और पिछड़ों को भी जोडऩा चाहेगी।

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