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जन्माष्टमी पर्व (26 अगस्त) पर विशेष: श्रीकृष्ण का गौ माता के प्रति प्रेम और वात्सल्य

जन्माष्टमी पर्व (26 अगस्त) पर विशेष: श्रीकृष्ण का गौ माता के प्रति प्रेम और वात्सल्य

-डॉ. शारदा मेहता-..

श्रीकृष्ण का गौ माता के प्रति प्रेम और वात्सल्य कई पौराणिक कथाओं और पुराणों में विस्तार से वर्णित है। उनका यह प्रेम हमें प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति करुणा और संवेदनशीलता का महत्त्व सिखाता है।
श्रीकृष्ण का बाल्यकाल और गौचारण
श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था, लेकिन उन्हें मथुरा से गोकुल भेज दिया गया ताकि वे कंस के क्रूर शासन से सुरक्षित रहें। गोकुल और वृंदावन में उनका बाल्यकाल बीता, जहां उन्होंने अपने बचपन का अधिकांश समय गौचारण में बिताया। यशोदा माता और नंद बाबा के घर पर पले-बढ़े श्रीकृष्ण को गायों से विशेष लगाव था।
हर सुबह जब श्रीकृष्ण अपनी बांसुरी बजाते थे, तब सभी गायें उनकी ओर आकर्षित हो जाती थीं। वे अपनी बांसुरी की मधुर धुन से गायों को इकट्ठा करते और उन्हें चराने के लिए जंगल ले जाते। इस दौरान वे अपने सखाओं (मित्रों) के साथ खेलते, गाते और नाचते थे। गायों की देखभाल करना, उन्हें साफ रखना और उनका ध्यान रखना श्रीकृष्ण के दैनिक कार्यों का हिस्सा था।
गौचारण और श्रीकृष्ण की बांसुरी
एक दिन श्रीकृष्ण और उनके सखा ग्वालबालों के साथ गायों को चराने के लिए जंगल गए। उस दिन सभी ग्वालबाल खेलकूद में मग्न हो गए और गायें दूर तक फैल गईं। श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी निकाली और एक मधुर धुन बजाने लगे। बांसुरी की धुन इतनी मनमोहक थी कि दूर-दूर तक फैली सभी गायें उसकी ओर खिंचती चली आईं।
सभी ग्वालबाल भी बांसुरी की धुन सुनकर श्रीकृष्ण के पास आ गए। उन्होंने देखा कि सभी गायें अपनी गर्दन ऊपर उठाकर, कान खड़े करके, ध्यानपूर्वक बांसुरी की धुन सुन रही थीं। धीरे-धीरे सभी गायें श्रीकृष्ण के चारों ओर इकट्ठी हो गईं। यह दृश्य बहुत ही मनमोहक था। गायों के बीच में खड़े श्रीकृष्ण का वह दृश्य आज भी चित्रों और कथाओं में जीवंत है।
गायों के उनके प्रति इस अटूट प्रेम को देखकर श्रीकृष्ण ने उन्हें स्नेहपूर्वक सहलाया और उनके लिए ताजे हरे चारे का इंतजाम किया। उन्होंने गायों की देखभाल की और उन्हें पानी पिलाया। श्रीकृष्ण के इस प्रेम और देखभाल से गायें अत्यंत प्रसन्न हुईं और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।
प्रमुख गौ माताएँ
सुरभि: सुरभि को दिव्य गाय माना जाता है जो भगवान विष्णु के द्वारा पृथ्वी पर भेजी गई थी। सुरभि की पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका है, विशेषकर गोवर्धन पर्वत की कथा में।
नंदिनी: यह ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय की पुत्री थी। नंदिनी भी एक दिव्य गाय थी जो सभी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम थी।
धेनु: धेनु गाय भी पौराणिक कथाओं में उल्लेखित है और इसे विशेष आदर और सम्मान प्राप्त है।
गोवर्धन पर्वत और सुरभि गाय
एक महत्वपूर्ण कथा गोवर्धन पर्वत की है, जिसमें श्रीकृष्ण ने इंद्र देव के क्रोध से गोकुलवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा लिया था। इंद्र देव ने गोकुलवासियों को दंड देने के लिए भारी वर्षा भेजी थी, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें बचा लिया। इस घटना के बाद, सुरभि गाय ने श्रीकृष्ण के पास आकर इंद्र देव से उनकी महानता को स्वीकार करने का आग्रह किया। इंद्र ने श्रीकृष्ण की महानता को मान्यता दी और उन्हें गोविंद के रूप में पूजने का वचन दिया।
गौ माता के प्रति श्रीकृष्ण का स्नेह
श्रीकृष्ण का गायों के प्रति स्नेह और देखभाल उन्हें एक आदर्श गौपालक के रूप में प्रस्तुत करता है। वे गायों के साथ बात करते, उन्हें प्यार से सहलाते और उनकी सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखते थे। गौ माता के प्रति उनका यह वात्सल्य हमें यह सिखाता है कि सभी प्राणियों के प्रति करुणा और प्रेम का भाव रखना चाहिए।
गौ सेवा का संदेश
श्रीकृष्ण की गौ सेवा का संदेश आज भी प्रासंगिक है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि हमें पशुओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए और उनके प्रति हमारी जिम्मेदारियों को कैसे निभाना चाहिए। गौ माता की सेवा करने से न केवल हमें आध्यात्मिक लाभ मिलता है बल्कि यह हमारे पर्यावरण और समाज के लिए भी लाभकारी है।
श्रीकृष्ण का गायों के प्रति प्रेम हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाता है, यथा:
प्रकृति और पशुओं के प्रति सम्मान: श्रीकृष्ण का उदाहरण हमें सिखाता है कि हमें प्रकृति और पशुओं का सम्मान करना चाहिए। यह हमारे पर्यावरण को स्वस्थ और संतुलित रखने में मदद करता है। गौ माता से प्राप्त दूध, घी मक्खन, गोबर, गौमूत्र, दही आदि सभी मानव स्वास्थ्य
करुणा और स्नेह: गौ माता के प्रति श्रीकृष्ण का स्नेह और करुणा यह दर्शाता है कि हमें सभी जीवों के प्रति करुणामय और संवेदनशील होना चाहिए। के लिए अत्यंत आवश्यक घटक हैं।
गायों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: हिंदू धर्म में गायों को विशेष स्थान प्राप्त है। उन्हें माँ का दर्जा दिया गया है और उनकी सेवा करना पुण्य का कार्य माना जाता है। श्रीकृष्ण का गौ माता के प्रति प्रेम इस धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को भी दर्शाता है। अवैध रूप से किए जाने वाले गौवध को रोकना चाहिए। गौशालाओं का विकास हो और पशुधन का संवर्धन होता रहे, यही मानव मात्र का लक्ष्य होना चाहिए।

सियासी मियार की रीपोर्ट