हर जगह मुठभेड़..

सियासत की पहलवानी ने कई तंबू उखाड़ दिए, लेकिन आसमान को फिर भी तसल्ली नहीं। युद्ध के माहौल में हो रही राजनीति का असर यह कि जनता को भरोसा नहीं कि वह चुन किसे रही। सोलन नगर निगम के ढाई साल के बाद मेयर के चुनाव ने कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार को शिकस्त देकर जो खेल किया, उसके जख्म अब हरे हो गए। नगर निगम के मेयर व पूर्व मेयर की हस्ती अब सरकार की कार्रवाई ने छीन ली, नतीजतन उपचुनाव का खाका कई बड़े सवालों को खाक नहीं कर पाएगा। अस्थिरता के दामन में मतदाता की आशाएं और कसूरवार होते विकास के नैन नक्श। हर मुठभेड़ में लुट रहा है सिंहासन, चलो फिर से कोई नया फार्मूला बनाएं। जाहिर है नगर निगम सोलन की पताका बदलेगी और कुछ इसी तरह की सुगबुगाहट धर्मशाला नगर निगम के मोहल्ले में है। ऐसे में प्रश्न यह कि स्थानीय निकायों में भी अगर अस्थिरता के बीज बोने के लिए राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा ही जिम्मेदार है, तो जनता की अभिलाषा बचेगी कहां। आश्चर्य यह कि जिस जरूरत का नाम नगर निगम है, उसकी जरूरत में राजनीति की जरूरतें पूरी हो रही हैं और यह खेल तब तक जारी रहेगा जब तक मेयर पद के लिए प्रत्यक्ष चुनाव नहीं होते। अप्रत्यक्ष कंधों पर चढ़ रहे मेयर यूं ही चढ़ते और उतरते रहेंगे। सियासत ने जिस घड़ी में कांग्रेस को गच्चा देकर मेयर चुना, कमोबेश वही परिस्थितियां अब नए हालात में नियंत्रण करेंगी। ये नजारे शर्मनाक हैं और धीरे-धीरे हिमाचल को घोर अस्थिरता के जंगल में धकेल रहे हैं।
कब हम सोलन शहर के भविष्य के लिए नगर निगम के पार्षद और पार्षदों के पार्षद यानी मेयर को इस नीयत से चुन पाएंगे कि पूरा नागरिक समाज आगे बढ़ पाए। कहना न होगा कि हिमाचल के पांचों नगर निगम केवल रस्म अदायगी की तरह राजनीति का सामान तो बन गए, मगर हिमाचल के शहरीकरण संबोधित नहीं हुआ। वित्तीय संसाधनों के अभाव में सारे नगर निगम केवल कागजी शेर हैं, जबकि शहर को बसाने की परिकल्पना के लिए मेयर और पार्षदों का निर्वाचन सौ फीसदी तौर पर पारदर्शी व वास्तविक होना चाहिए। हिमाचल में राजनीतिक अस्थिरता के प्रमाण अब तहरीर बनने लगे हैं, चुनावी मोहल्ले के वकील अब सडक़ पर लडऩे लगे हैं। अभी फाइलों के टकराव, घटनाक्रम के उन्माद और हस्तियों के प्रकार दिखने लगे हैं। राज्यसभा चुनाव के अंकगणित से सियासत का बिगड़ा मूड, सत्ता के सबूत से प्रमाणित होगा। उपचुनावों से पहले नाव दरिया में डूबी या चुनावी कसरतों ने शह और मात को अब बुलंद किया। जो भी हो, सोलन में मेयर और डिप्टी मेयर का अयोग्य होना साधारण घटना तो नहीं है और न ही अब क्रॉस वोटिंग के घाव कभी सहज होंगे।
इसलिए अब मुकाबले के परिदृश्य में कभी राज्य की जांच भारी पड़ेगी, तो कभी अदालत के नोटिस पर मानहानि के मामले अशांत दिखेंगे। जो भी हो, लेकिन यह तय है कि जो गुजर गया, वह भी अपने पीछे बारूद छोड़ गया और जो होना है, उसके लिए बारूद खोजा जा रहा है। फिर तीन निर्दलीयों के उपचुनाव सियासत की वीरभूमि खोजेंगे तो सीपीएस मामलों की परछाई में सत्ता के चिराग खुद को बचाएंगे। कांग्रेस से भाजपा में जा मिले नेताओं का शोर एक उपचुनाव में तो पूरी तरह सफल नहीं हुआ, फिर निर्दलीयों की अमानत पर निशाने करीब से लगेंगे। इसी तरह नगर निगम सोलन अब एक अद्भुत प्रसंग में पुन: अपना मेयर देखेगा, तो जब बारात निकलेगी तो खबर यह भी आएगी कि किस अन्य नगर निगम में मेयर के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव मुंहफट हो गया।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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