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निर्णायक क्षण में जनता को भरोसा दिलाए चुनाव आयोग…

निर्णायक क्षण में जनता को भरोसा दिलाए चुनाव आयोग…

-जगदीश रत्तनानी-

यह अब चुनावी कुप्रबंधन की तरह अधिक दिख रहा है, ढिलाई के अर्थ में कम और भयावह के अर्थ में अधिक। चुनाव प्रक्रिया की अखंडता के लिए ‘नियमित, स्वतंत्र और निष्पक्ष’ तीन आवश्यक मुद्दे हैं जिन पर कोई समझौता या बातचीत नहीं हो सकती। जब प्रक्रिया की निष्पक्षता संदिग्ध होती है तो प्रक्रिया की नियमितता अर्थहीन हो जाती है।

राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली के संबंध में अच्छी तरह से खोजबीन के बाद जारी विस्तृत रिपोर्ट के बारे में भारत के केन्द्रीय चुनाव आयोग (सीईसी) की प्रतिक्रिया विशिष्ट चिंताओं को उठाती है। यह प्रतिक्रिया चौंकाने वाली है। तीन योग्य आयुक्तों के अधीन काम करने वाले ईसीआई को अपने खिलाफ लगे आरोपों को विपक्ष के नेता के साथ वादविवाद में बदलने का कोई कारण नहीं है। कर्नाटक और दो अन्य राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा की गई हास्यास्पद मांग कि- गांधी को शपथ के तहत आरोपों पर हस्ताक्षर करना चाहिए या देश से माफी मांगनी चाहिए, केवल ईसीआई के भीतर बेचैनी को इंगित करती है। राहुल के सवाल आम लोगों के समक्ष आयोग पर भरोसे की बात को उठाते हैं और उनमें चुनाव प्रक्रिया की अखंडता पर वैध चिंताएं हैं। आदर्श रूप से यह ईसीआई के हित में है कि वह एक टास्क फोर्स का गठन करे, समय पर ढंग से इसकी तह तक जाए जो सभी पक्षों को संतुष्ट करे और सभी संदेहों को दूर करे या सुधारात्मक कार्रवाई में परिणाम दे। यह जांच चुनाव प्रक्रिया से कम गंभीर और कठोर नहीं होनी चाहिए।

जैसा कि राहुल गांधी ने बेंगलुरु में महादेवपुरा विधानसभा सीट के संबंध में बताया है और जिस पर संदेह है वह आखिरकार केवल फर्जी मतदाताओं के कारण एक सीट का परिणाम नहीं है बल्कि भारतीय लोकतंत्र का भविष्य भी है। हर भारतीय चाहे उसका राजनीतिक रंग या कोई भी पार्टी हो, इस बात से सहमत होगा कि भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के दिल में नियमित, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता है। ये वे शब्द भी हैं जो चुनाव आयोग की वेबसाइट पर ‘चुनाव प्रबंधन’ शीर्षक से लिंक के तहत दिए गए हैं।

यह अब चुनावी कुप्रबंधन की तरह अधिक दिख रहा है, ढिलाई के अर्थ में कम और भयावह के अर्थ में अधिक। चुनाव प्रक्रिया की अखंडता के लिए ‘नियमित, स्वतंत्र और निष्पक्ष’ तीन आवश्यक मुद्दे हैं जिन पर कोई समझौता या बातचीत नहीं हो सकती। जब प्रक्रिया की निष्पक्षता संदिग्ध होती है तो प्रक्रिया की नियमितता अर्थहीन हो जाती है और ‘मुक्त’ एक खोखला शब्द बन जाता है। इसके अलावा कोई भी स्पष्ट रूप से देख सकता है, निष्पक्षता केवल कागजी कार्रवाई की औपचारिकता या चुनाव आयोग के कार्यालयों या रिकॉर्ड की बंद सीमाओं में नहीं है। प्रक्रिया को निष्पक्ष भी देखा जाना चाहिए जिसके लिए हमें एक ऐसे ईसीआई की आवश्यकता है जो पारदर्शी हो और उन लोगों की आशंकाओं के प्रति संवेदनशील हो जिन्होंने न केवल अभी बल्कि पिछले कई वर्षों में इस प्रक्रिया पर संदेह करना शुरू कर दिया है।

यह भी आश्चर्य की बात है कि ईसीआई के बचाव में भाजपा सामने आई है। यह बचाव भाजपा के साथ-साथ ईसीआई को भी नुकसान पहुंचा रहा है। यह बचाव अन्य आशंकाओं को जन्म देता है जो इस प्रक्रिया में विश्वास को खत्म कर देता है। भाजपा नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ दिए बयानों से संकेत मिलता है कि राहुल द्वारा मतदाता सूची में धोखाधड़ी के खुलासे ने भाजपा को कितना नाराज कर दिया है। महाराष्ट्र वह राज्य है जहां जमीनी रिपोर्टों ने संकेत दिया कि 2024 के पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को भारी झटका लगेगा तथा शिवसेना को विभाजित करने, एकनाथ शिंदे के अलग हुए समूह को गुजरात व असम के भाजपा शासित राज्यों में ले जाने और फिर उद्धव ठाकरे सरकार को सफलतापूर्वक गिराने में उसकी भूमिका के लिए दंडित किया जाएगा। अधिकांश पर्यवेक्षक भाजपा विरोधी भावना को पढ़ सकते थे लेकिन फडणवीस को सत्ता में वापस लाने वाले नतीजों ने चौंका दिया। भाजपा ने शिवसेना से अलग हुए गठबंधन में 288 सीटों में से 132 सीटें हासिल कीं।

अगर भारत को लोकतंत्र के रूप में ध्वस्त नहीं होना है तो आगे का रास्ता क्या होना चाहिए?

सबसे पहले, चुनाव आयुक्तों को देश के सामने यह संकल्प लेना चाहिए कि मतदाता सूची, मतदान रिकॉर्ड, वीडियो रिकॉर्डिंग, सभी कैमरा फीड और पेपर ट्रेल्स के साथ-साथ ईवीएम मशीनों सहित रिकॉर्ड पर मौजूद सभी डेटा को संरक्षित किया जाएगा और भविष्य की किसी भी तारीख में पूर्ण जांच के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। इस तरह के संरक्षण की प्रक्रिया का स्वतंत्र रूप से ऑडिट किया जाना चाहिए और समय-सीमा अब नियम पुस्तिकाओं में निर्दिष्ट समय से काफी आगे बढ़ानी चाहिए क्योंकि हम असामान्य परिस्थितियों और प्रमुख विपक्षी दल के बहुत गंभीर आरोपों से गुजर रहे हैं। मूल फ़ाइलों को एन्क्रिप्ट और वॉल्ट करने की आवश्यकता है। यह देश को आश्वस्त करेगा कि भले ही इस क्षेत्र में कुछ गलत हो गया हो, जिसमें संबंधित प्रक्रिया को हराने के लिए इच्छुक पार्टियों द्वारा कोई ठोस प्रयास शामिल है उसके बावजूद ईसीआई इसकी तह तक जाने के लिए गंभीर है। ऐसा करना ईसीआई को राजनीतिक लड़ाई से खुद को अलग करने और पेशेवर गर्व के साथ अलग खड़े होने का अवसर देगा। दूसरा, ऐसा कोई कारण नहीं है कि मतदाता सूचियों की सॉफ्ट कॉपी तत्काल प्रभाव से उपलब्ध नहीं कराई जानी चाहिए। यदि किसी कारण से ये उपलब्ध नहीं हैं तो कम से कम विपक्ष के नेता को प्रदान किए गए प्रिंट पठनीय होने चाहिए। ईसीआई ऐसा क्यों नहीं करेगा? तीसरा, जल्दबाजी में किया गया बिहार विशेष गहन संशोधन संदेह से भरा हुआ है। जमीनी स्तर पर अब पर्याप्त सामग्री है जिससे यह संकेत मिलता है कि पर्याप्त सत्यापन के बिना मतदाता सूची में नए नाम जोड़े जा सकते हैं जिसकी वजह से जो लोग योग्य नहीं हो सकते हैं वे मतदाता बन जाएंगे और उसी वक्त एक ही समय में कई सीमांत समूह मतदाता होने से वंचित होने का जोखिम उठाते हैं। ड्राफ्ट रोल पर लाखों नामों में हाउस नंबर शून्य बताया गया है। संशोधित नामावली संबंधी आंकड़ों को पुन: नॉन मशीन रीडेबल बना दिया गया है। एसआईआर ड्राफ्ट संशोधित सूची डाउनलोड करने पर कई मामलों में हाउस नंबर शून्य दिखाई देते हैं लेकिन संख्याओं को स्वचालित रूप से गिनना संभव नहीं है क्योंकि फाइल मशीन से पठनीय नहीं है।

राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों से लेकर बिहार से जमीनी रिपोर्टों तक की परिस्थितियों को देखते हुए इस विचार से बचना मुश्किल लगता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है।

चुनाव आयोग के नेतृत्व को यह जानना और समझना चाहिए कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण क्षण है। ईसीआई के प्रभारी लोग और उनका व्यवहार तथा आचरण कैसा है, इसे न केवल आज के संदर्भ में देखा जाएगा बल्कि अब से वर्षों बाद याद किया जाएगा और उसका उल्लेख किया जाएगा। जब चुनावों की नींव ही खतरे में थी तो चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार सबसे महत्वपूर्ण स्वतंत्र संस्था ने क्या किया? स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का क्या मतलब है? जब नई सूची में हजारों में घर क्रमांक शून्य के रूप में चिह्नित हैं तो क्या नामों को बिना उचित जांच के जोड़ा जा सकता है या वैध कारणों के बिना बाहर रखा जा सकता है? यदि मतदाता सूची को दूषित किया जाता है तो समझिए कि भारतीय लोकतंत्र प्रभावी रूप से मिटा दिया जाता है। भारत से उसका सबसे मूल्यवान रत्न छीन लिया जाएगा- एक ऐसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया जिसकी दुनिया प्रशंसा करती है और जिस पर हर भारतीय को गर्व है। ईसीआई को तेजी से कार्य करना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)