सरदार पटेल पुण्यतिथि (15 दिसंबर) पर विशेष: नैतिकता के पक्षधर थे-सरदार वल्लभ भाई पटेल
-मुकेश तिवारी-

सरदार वल्लभभाई पटेल एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने सिर्फ संकल्प शक्ति और मेहनत के बलबूते पर वो मुकाम बनाया। जिसे किसी के लिए भी छू पाना मुमकिन नहीं है। उनकी असाधारण काबिलियत ही थी कि एक साथ 562 रियासतों का एकीकरण करके उन्होंने मिसाल कायम की। इस वजह से ही उन्हें आधुनिक भारत का चाणक्य माना जाता है। सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के करमसद, नाडियाद ग्राम में हुआ था, इनके पिता का नाम झवेर भाई और मां का नाम लाड बाई था। झबेर भाई मूलत बोरसद इलाके के करमसद गांव के रहने वाले थे और खेती किसानी किया करते थे। , बल्लभ भाई सहित झवेर भाई के छ संताने थी, वल्लभभाई का बचपन माता पिता के साथ गांव में ही बीता यही पर इनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, इसके पश्चात माध्यमिक स्तर की शिक्षा उन्होंने नडियाद वह बड़ौदा से पूर्ण की।
वल्लभभाई का बाल्यकाल माता -पिता के साथ गांव में ही बीता, गांव में ही इनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, इसके पश्चात माध्यमिक स्तर की शिक्षा इन्होने नडियाद व बडौदा से पूरी की।
वल्लभभाई के पिता झबेर भाई बड़े साहसी, संयमी और साहसी पुरुष थे, 1857 की क्रांति के समय घर वालों को बिना बताए तीन साल तक घर से बाहर रहे। वही झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई और नाना साहिब घोड़ोंपंत की सेना में भर्ती हुए, उन्होंने समस्त उत्तरी भारत का भ्रमण किया तथा स्वतंत्रता के लिए अनेक मर्तबा ब्रिटिश सेना के साथ युद्ध किया, पिता के संयम, साहस, वीरता और राष्ट्र भक्ति के गुण वल्लभभाई को संस्कार में प्राप्त हुए थे। वे बाल्यकाल से ही वक्त के अधिकतम उपयोग तथा अपने दायित्व के प्रति हर पल समर्पित रहते थे। राजनीति में दाखिल होने के पश्चात इन गुणों ने ही वल्लभभाई को हिन्दुस्तान के बिखरे हुए स्वरूप को एक सूत्र में पिरोने के लिए प्रेरित किया, उनकी दृढ निर्णय की प्रवृत्ति ने ही उन्हें लौह पुरुष कहलाने का सम्मान प्रदान किया तथा योग्य नेतृत्व के गुणों ने सरदार की पदवी से विभूषित करवाया, वल्लभभाई का विधार्थी जीवन अत्यंत परिश्रमी, उज्जवल एवं नैतिकता से पूर्ण रहा, इस स्तर पर ही उनमें भावी जीवन के शुभ लक्षण दिखाई देने लगे थे, वे नाडियाद में अध्ययनरत थे तभी उन्होंने विधालय की अव्यवस्थाओं के लिए आंदोलन किया, यहां स्कूल का एक शिक्षक पुस्तकों का व्यापार करता था तथा सभी शिक्षक उससे ही पुस्तक खरीदने के लिए विधार्थियों को बाध्य करते थे, बल्लभ भाई को शिक्षकों की यह बात उचित नहीं लगी, पटेल ने इसे नैतिकता का हनन मानकर विरोध स्वरूप आंदोलन प्रारंभ कर दिया, अंततः शिक्षकों को झुकना पड़ा, यह उनकी नैतिक सदप्रवृति का बेहतरीन उदाहरण था, अन्याय के प्रति संगठित विरोध की यह शुरूआत थी, बडौदा में आकर वल्लभभाई ने गुजराती विषय लिया, यहां छोटे लाल गुजराती पढ़ाते थे, मगर वे संस्कृत के प्रति अधिक समर्पत थे, हालांकि संस्कृत नं पढ़ने वाले विधार्थियों को छोटे लाल कतई पसंद नहीं करते थे, पटेल जी ने भी संस्कृत नहीं ली थी अतः वे उनसे नाराज़ रहने लगे थे।
वल्लभभाई का अडिग व्यक्तित्व गलत बातों को कभी भी स्वीकार नहीं कर सका, अल्प समय बाद ही एक अन्य अध्यापक से उनका विवाद हो गया अतः, पटेल को स्कूल से निकाल दिया गया, पटेल पुन नाडियाद आ गए, सत्य पर अडिग रहने तथा अन्याय का हर हाल में विरोध करने की उनकी बचपन की प्रवृत्ति ही भविष्य में हिंदुस्तान को एकजुट करने का पूर्वाभ्यास सिद्व हुई। वैसे भी सरदार वल्लभभाई पटेल का कहना था कि एकता के बिना जनशकित तब तक एक ताकत नहीं बन सकती, जब तक उसे एकजुट कर सामंजस्य में न लाया जाये, तब यह एक आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है, पटेल जी के व्यक्तित्व में दब्बूपन व दूसरों पर आश्रित रहने के भाव का समावेश कभी नहीं था, वे सदैव स्वतंत्र भाव से नैतिकता की रक्षा करते रहे, अपनी कबलियत, व्यवहार, वाक् चातुर्य पर उन्हें पूरा भरोसा था, अपने इन्हीं गुणों के कारण गोधरा में वकालत करते वक्त ही उन्होंने खूब ख्याल अजिर्त कि वह हत्या जैसे संगीन मामलों में भी अपने तर्कों से सदैव प्रभावी बने रहते तथा लगभग प्रत्येक मामले में जीतते थे।
जुलाई 1917 में बल्लभ भाई गुजरात क्लब के सेक्रेटरी चुने गए इन दिनों गांधीजी बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती के अंग्रेज ठेकेदारों और जमीदारों द्वारा शोषित कृषकों के लिए गांव-गांव घूमकर उनके अधिकारों के लिए लड़ रहे थे, उनके इस कार्य का देशव्यापी प्रभाव पड़ रहा था, गांधी जी ने मोतिहारी में चंपारण के चले जाने संबंधी मजिस्ट्रेट का आदेश मानने से दो टूक शब्दों में मना कर दिया और अपना काम जारी रखा, उन पर मुकदमा चला और इस मुकदमे में गांधीजी के बयान से देश भर में हड़कंप मच गया।
वल्लभ भाई व उनके मित्रों ने यह बयान समाचार पत्र में पढ़ा तथा गांधी जी के साहस से काफी प्रभावित हुए, इस घटना के पश्चात गांधीजी के प्रति वल्लभभाई के जहन में आदर भाव बढ़ा, जो उनके भावी राजनीतिक जीवन का सूत्रधार सिद्ध हुआ, वल्लभभाई 19 15 से ही गुजरात सभा के सदस्य थे, इस सभा ने सन 1917 में गोधरा में गांधी जी की अध्यक्षता में एक सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें अनेक कद्दावर नेता सम्मिलित हुए तथा प्रायः सभी ने हिंदी व गुजराती में भाषण दिया, यहां तक कि जिन्ना ने भी गुजराती में भाषण दिया, इस सम्मेलन में किसी ने भी अंग्रेजी में भाषण नहीं दिया, साथ ही ब्रिटिश ताज के प्रति वफादारी का प्रस्ताव पारित किया जाना समाप्त करवाया गया तथा इसे अनावश्यक करार दिया गया, अंग्रेजों और अंग्रेजी शासन का ऐसा विरोध पहली मर्तबा हुआ था, इस बीच एक कार्यसमिति का गठन किया गया, जो परिषद का अधिवेशन होने तक कार्य करती रही।
इस समिति के गांधी जी स्वयं अध्यक्ष रहे तथा वल्लभभाई को मंत्री नियुक्त किया गया और इसका कार्यालय अहमदाबाद में रखा गया, अब तक देश में होम रुल की स्थापना हो चुकी थीऔर सारे देश में बेगार विरोधी आंदोलन गति पकड़ रहा था, परिषद का मंत्री होने के कारण उक्त कार्यक्रम को सफल करने का दायित्व वल्लभभाई पर ही था, वल्लभभाई ने अत्यंत ही उत्साह से कार्य प्रारंभ किया तथा कमिश्नर के साथ पत्र व्यवहार किया, शुरूआत में तो कमिश्नर ने न नुकुर की मगर वल्लभभाई ने सात दिन तक का नोटिस देकर स्पष्ट कर दिया कि यदि निर्धारित समय सीमा में उत्तर न दिया, तो वे हाईकोर्ट के निर्णय के आधार पर बेगार प्रथा को गैर कानूनी ठहराकर लोगों को बेगार देना बंद करने की सूचना दे देंगे, हालांकि कमिश्नर ने नोटिस की समयावधि समाप्त होने से पूर्व ही वल्लभभाई को बुलाकर सारी स्थिति स्पष्ट कर पटेल की अभिलाषा के अनुसार निर्णय दे दिया, गांधी जी वल्लभभाई की इस उपलब्धि से काफी खुश हुए, इस घटनाक्रम से गांधी जी के साथ उनका संपर्क बढ़ा और पटेल उनके विश्वासपात्र सहयोगी बन गये, पटेल की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने वकालत करनी शुरु कर दी, महज तीन वर्षों में वकालत से इतनी धन राशि अजिर्त कर ली कि वह आसानी से विदेश जाकर वकालत का अध्ययन कर सकते थे, अतः उन्होंने 1905मे में टामस कुक एंड कंपनी के साथ पत्र व्यवहार किया तथा विदेश यात्रा के लिए टिकिट आदि का प्रबंध किया, इस बीच दुर्भाग्य से टामस कुक एंड कंपनी का पत्र बल्लभ भाई के बड़े भाई विट्ठल के हाथ लग गया, पत्र का मजूम पढ़ते ही उनके जहन में विदेश जाकर बैरिस्टरी पास करने की इच्छा जागृत हो गई, काफी संकोच के पश्चात उन्होंने वल्लभभाई से कहा कि मैं तुमसे बड़ा हूं, इसलिए मुझे बैरिस्टरी के लिए विदेश जाने दो, मेरे लौटकर आने के पश्चात तुम चले जाना, तुम्हें तो बाद में भी मौका मिल जाएगा, लेकिन तुम अभी चले गए तो मुझे जाने का मौका नहीं मिलेगा, मान मर्यादा के प्रति समर्पित भाव रखने वाले वल्लभ भाई ने बड़े भाई कि आज्ञा का पालन किया और उन्हें विदेश भेज दिया।
वल्लभभाई मे परिस्थितियों को अनुकूल बना लेने की अद्भुत क्षमता थी उन्हें विदेश, जाना था इसके लिए उन्होंने इंतजार किया, विट्ठल भाई के विदेश से लौटने के पश्चात अगस्त 1910 में वल्लभभाई विदेश जाने के लिए जहाज मैं सवार हो गए, वहां पहुंचकर वैरिसटरी की पढ़ाई के लिए उन्होंने मिडिल टेंपल में दाखिल लिया, यह रोमन ला की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, इतना ही नही बैरिस्टरी की परीक्षा में भी उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया, व उस साल का पुरस्कार वल्लभभाई तथा डेविस के मध्य में बाटा गया, बल्लभ भाई ने अपनी अंतिम परीक्षा जून 1912मे उत्तीर्ण की, जिसमें उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ, उन्हें 50 पौंड का नकद पुरस्कार मिला लौह पुरुष के नाम से ख्याति प्राप्त करने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल सदैव से ही धैर्यवान व आत्मसंयमी रहे हैं, बड़ी से बड़ी कठिनाई को भी हंसते हुए सहन कर लेना उनके व्यक्तित्व का अंग बन गया था, बल्लभ भाई की पत्नी झवेर बाद अस्वस्थ चल रही थी तथा जिस जगह वे वकालत करते थे, वहां स्वास्थ्य लाभ की उचित व्यवस्था न होने पर उन्हें भी मुंबई भेज दिया गया, इनके साथ मणिबेन व डाहया भाई भी मुंबई आ गए, लेकिन उनका उपचार करने वाले डॉक्टर ने बताया कि 15-20 दिन बाद दवाई से स्थिति सुधारने पर ही अंतड़ियों का आपरेशन होगा, यह सुनकर वल्लभभाई वापस लौट गए, तथा आपरेशन के समय बुलवा लेने के लिए कह गए, वे मुकदमे की पैरवी के लिए आनंद चले गए, इसी दौरान जरूरी होने पर डॉक्टर ने झबेर बा का आपरेशन कर दिया, आपरेशन की सूचना बल्लभ भाई पटेल को नहीं दी गई, आपरेशन सफल रहने पर तार से सूचना भेज दी गई, दुर्भाग्य से सूचना भेजने के दूसरे ही दिन झवेर बा की हालत बिगड़ गई और वे चल बसी, झबेर बा के निधन का समाचार जिस वक्त वल्लभभाई को प्राप्त हुआ उस वक्त वे एक हत्या के मुकदमे की पैरवी कर रहे थे, जो कि अत्यधिक संगीन मामला था तथा जरा सी भी चूक जीवन मरण का प्रश्न पैदा कर सकती थी, पटेल केलिए यह अप्रत्याशित व दुःखद क्षण था, किन्तु साथ ही वे धर्मसंकट में भी उलझ गए कि क्या करें, एक तरफ हत्या का संगीन मुकदमा, जिसमे महत्वपूर्ण गवाह से जिरह की जा रही थी, जिसमें कोताही बरतने पर उसे फांसी की सजा भी हो सकती थी, दूसरी और पत्नी के अंतिम दर्शन का प्रश्न था।
ऐसी विषम परिस्थिति में लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने धेर्य का परिचय देते हुए इस दुःखद समाचार के तार को बिना किसी प्रकार का भाव प्रकट किए अपने कोट की जेब में रख लिया तथा बहस जारी रखी, जीवन -संगिनी के वियोग तथा अंतिम वक्त में भी भेंट न कर पाने के आघात को सीने में सदैव के लिए दफन कर उन्होंने पहले अपना कर्तव्य निभाया, इस समय वल्लभभाई की उम्र सिर्फ 33वर्ष थी, रिश्तेदार, मित्र पुनर्विवाह के लिए दबाव देने लगे, लेकिन वल्लभभाई इसके विपरीत अपनी बात पर अडिग रहे वे लेशमात्र भी नहीं डगमगाए, 1911मे उनके एक पैर में नाहरूआ निकल आया, दो बार के आपरेशन के बाद भी नाहरूआ पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ और शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने लगा, तो डॉकटर ने पैर को काटने की बात कही, मगर इसके लिए पटेल तैयार नही हुए, उन्होंने तीसरी बार आपरेशन करवाया वह भी बिना क्लोरोफॉर्म के, आपरेशन करने वाला डॉक्टर यह देखकर भौंचक रह गया कि उन्होंने आपरेशन के दौरान एक मतवा भी सिसकारी तक नहीं निकली, हालांकि इस आपरेशन के बाद नाहरुआ निकल गया तथा वल्लभभाई पूरी तरह स्वस्थ हो गए, 1918में महात्मा गांधी ने उन्हें खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए चुना, जिसने उन्हें सार्वजनिक सेवा की रहा पर अग्रसर किया। अगस्त 1922मे जब सविनय अवज्ञा समिति जबलपुर गई, तब वहां की नगर पालिका ने एक प्रस्ताव पारित किया, हकीम अजमल खां को मान पत्र भेंट किया गया और नगर पालिका के हाल पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया, इसे बिटिश शासन ने अपना अपमान माना इसके बाद यहां गांधी जीके कारावास की वर्षगांठ पर राष्ट्रीय ध्वज के साथ विशाल जुलूस निकाला पुलिस ने जुलूस के अगुवा 10-12लोगो को हिरासत में ले लिया और ध्वज को जब्त कर लिया, यद्यपि दूसरे दिन सभी लोगों को रिहा कर दिया, मगर ध्वज वापस नहीं लौटाया, इस बात की जानकारी मिलने पर मध्य प्रदेश की तात्कालिक राजधानी नागपुर में पुनः विशाल जुलूस निकाल गया, इस पर पुलिस व स्थानीय मजिस्ट्रेट ने जुलूस को रोकने का प्रयास किया, जब लोग नहीं रुके तो पुलिस उनपर लाठियां लेकर टूट पड़ी, ऐसी स्थिति में भला वल्लभभाई कैसे मौन रहते, उन्होंने गुजरात से नागपुर जाने के लिए खेड़ा जिले में 75लोगो की एक टोली रवाना कर दी, तथा अन्य स्थानों से भी निरंतर टोलियां रवाना करना शुरु कर दिया, सरकार ने इस झंडा सत्याग्रह को असफल करने के अनेक प्रयास किए, ऐसी स्थिति में वल्लभभाई को झंडा सत्याग्रह का नेतृत्व प्रदान कर कार्यक्रम को गतिशील किया गया, पटेल की मेहनत रंग लाई, नागपुर में झंडा सत्याग्रह सफलतापूर्वक जीतने के पश्चात सरकार ने उन्हें बोरसद ताल्लुका भाई के घर में ही छोड़ दिया, इस क्षेत्र जनता को अनियंत्रित व सरकार विरोधी होने का करार देकर उन पर अतिरिक्त पुलिस व्यवस्था आयुक्त द्वारा लगा दी गई तथा इसके साथ यहां तैनात पुलिस बल का समस्त व्यय कोई 2लाख रूपये बोरसद की जनता पर डाल दिया गया इस तरह की घटना पर वल्लभभाई ने सरकार से आरोप सिद्ध करने के लिए कहकर चुनौती दे दी, इसके साथ ही क्षेत्र में जनता को टेक्स न देने के लिए कह दिया, सरकार इस प्रकार जनता की भावना देखकर परेशान हो गई, एक दो महीने में ही गवर्नर ने अपना प्रतिनिधि भेजकर कर मामले की जांच करवाई, जांच में हकीकत कि जानकारी मिलते ही जनता से नहीं वसूल किया जाने वाला खर्च जनता से नहीं लिया गया,
इस प्रकार गुजरात की जनता ने सरकार की योजना विफल कर अपना स्वाभिमान ऊंचा कर लिया, इस युद्ध में भी वल्लभभाई ने गांधी जी से मिले साहस और अनुशासन के महान गुणों के कारण ही विजयश्री हासिल की तथा गांधीजी की गैरमौजूदगी मैं भी उनके हथियार को सफलतापूर्वक प्रयुक्त कर सच्चा सत्याग्रही व अनुयाई होना सिद्ध कर दिया, बोरसद के सफल सत्याग्रह के लिए गांधी जी ने वल्लभभाई को बोरसद का राजा कहा कर संबोधित किया, 1924मे अहमदाबाद नगर बोर्ड के अध्यक्ष बनने पर उन्होंने शहर की आधारभूत व्यवस्थाओ में सुधार किया और इस दौरान अहमदाबाद ने उनमें प्रशासक के साथ -साथ एक प्रेरक नेता भी देखा। 1928मे बारडोली सत्याग्रह में उनके नेतृत्व ने उन्हें समूचे देश में पहचान दिलाई। अंग्रेजो ने कूटनीति से भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में लैंप्स ऑफ पैरामाउसी विकल्प अनुसार यह स्वतंत्रता दे कि वे चाहे तो आजाद रह सकते हैं अथवा भारत पाकिस्तान किसी भी देश में अपना विलय कर सकते हैं, निःसंदेह अंग्रेजों का यह षड्यंत्र अखंड भारत के निर्माण में ला इलाज नासूर के रूप में कार्य करता यदि सरदार पटेल वल्लभभाई पटेल ने दृढ़ता पूर्वक अपनी बुद्धिमत्ता और साम दाम दण्ड भेद की नीति तथा अंतिम विकल्प के रूप में बल प्रयोग कर जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतो को भारत में सम्मिलित नहीं किया होता, वस्तुत भारत की आजादी की घोषणा के साथ ही अधिकांश रियासतों ने यह अर्थ लगा लिया कि अब वे संप्रभुता संपन्न राज्य हो जाएंगे, 12जून 1947को त्रावनकोर राज्य ने बाद में हैदराबाद निजाम ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने स्वतंत्र अस्तित्व की घोषणा कर दी, आधुनिक भारत के शिल्पकार वल्लभभाई भाई पटेल ने15 दिसंबर 1950 को मुंबई मे अपनी अंतिम सांस ली, भारत सरकार ने वल्लभभाई पटेल को 1991 में मरणोपरांत भारत रतन सम्मान से सम्मानित किया।
(लेखक के विषय में-म प्र शासन से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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