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सीयूसीबी में “पाला” और “दस्कठिया” में पारंपरिक भारतीय ज्ञान का होगा अध्ययन…

सीयूसीबी में “पाला” और “दस्कठिया” में पारंपरिक भारतीय ज्ञान का होगा अध्ययन…

गया, 16 फरवरी। “पाला ” और ” दस्कठिया ” में पारंपरिक भारतीय ज्ञान के परावर्तन का अध्ययन करने के लिए, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के दो संकाय सदस्यों ने भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित एक महत्वाकांक्षी परियोजना हासिल की है। ज्ञात हो कि बिहार में भारत सरकार द्वारा इस स्वीकृत अनुसंधान परियोजना को प्राप्त करने वाली सीयूएसबी अकेली शिक्षण संस्थान है।

शिक्षक शिक्षा विभाग से प्रधान अन्वेषक डॉ तपन कुमार बसंतिया (एसोसिएट प्रोफेसर) और सह-प्रधान अन्वेषक डॉ (श्रीमती) मितंजलि साहू (सहायक प्रोफेसर) द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को शिक्षा मंत्रालय (एमओई), भारत सरकार की संस्था अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) प्रभाग द्वारा अनुमोदित किया गया है। यह शोध परियोजना उन 15 प्रस्तावों में शामिल है, जिन्हें शिक्षा मंत्रालय के भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) कार्यक्रम द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा। दो वर्षों तक के अंतराल तक चलने वाले इस परियोजना के लिए 10 लाख स्वीकृत किए गए हैं।

सीयूएसबी के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह एवं कुलसचिव कर्नल आर.के. सिंह ने डॉ. बसंतिया और डॉ. साहू की उपलब्धि की सराहना करते हुए बधाई दी है। वहीं, स्कूल ऑफ एजुकेशन की डीन प्रो. रेखा अग्रवाल और विभागाध्यक्ष प्रो. कौशल किशोर के साथ विश्वविद्यालय परिवार ने इस परियोजना के हासिल होने पर खुशी व्यक्त की है और ‘शोध केंद्रित’ सीयूएसबी के सर में एक ताज के रूप में परिभाषित किया है।

परियोजना के बारे में विवरण प्रदान करते हुए डॉ. बसंतिया ने कहा कि ” पाला ” और ” दस्कठिया ” में पारंपरिक भारतीय ज्ञान के प्रतिबिंब और ग्रामीण सामाजिक संदर्भ में उनके शैक्षिक प्रभाव” शीर्षक वाली शोध परियोजना को एक कठिन सहकर्मी समीक्षा के बाद वित्त पोषण के लिए अनुमोदित किया गया है। यह परियोजना आईकेएस-एआईसीटीई, एमओई, सरकार को प्रस्तुत किए गए 156 प्रस्तावों में से 6 केंद्रित क्षेत्रों पर 15 स्वीकृत प्रस्तावों में से एक है। सीयूएसबी के साथ, भारत वर्ष से 11 (ग्यारह) अनुमोदित अनुसंधान परियोजनाएं विभिन्न आईआईटी से हैं, दो हैदराबाद विश्वविद्यालय से हैं और एक कृषि विज्ञान में स्नातकोत्तर अध्ययन कॉलेज (उमियाम-मेघालय), केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (सीएयू), इंफाल से हैं।

इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण सामाजिक संदर्भों में जीवन कौशल विकास और व्यवहार को आकार देने के संदर्भ में लोक रंगमंच, अर्थात् ” पाला ” और ” दस्कठिया ” के निहितार्थ को समझना है। यह परियोजना निश्चित रूप से हमारे लोक थिएटरों के संरक्षण और प्रचार के लिए जन जागरूकता को फिर से जीवंत करने में मदद करेगी, जो हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। कुलपति प्रो. के.एन. सिंह के दूरदर्शी और गतिशील नेतृत्व और दिशा के कारण संभव हुआ है। वहीं, डॉ. बसंतिया ने सीयूएसबी परिवार से मिले सहयोग और प्रेरणा ने का भी विशेष तौर पर उल्लेख किया।

सियासी मीयार की रिपोर्ट