नीट पर बाजारवाद हावी होने के निहितार्थ
-डॉ हिदायत अहमद खान-

किसी देश या राज्य की पहली जिम्मेदारी अपने नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं जिनमें आवास और भोजन की पूर्ति करना ही प्रमुख नहीं होती, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी प्राथमिकताओं को पूरा करना भी अहम होता है। संस्कारित समाज की ये ऐसी आवश्यकताएं हैं, जिनसे राज्य व देश का सुनहरा भविष्य छिपा होता है। व्यक्ति जितना पढ़ा-लिखा और हुनरमंद होने के साथ अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार होगा वह राज्य व देश उतना ही ज्यादा तरक्की करेगा। इसलिए सरकार से उम्मीद की जाती है कि वो इन सेवाओं को नि:शुल्क या कम से कम खर्च में नागरिकों को उपलब्ध कराए। इसके लिए पूंजीवादी सोच और बाजारवाद को तिलांजलि देने की आवश्यकता होती है। जहां ऐसा होता है, वहां विकास की गंगा बहती है, लेकिन जहां पैसा ही सब कुछ हो जाता है, वहां मानव सेवा वाली सोच नदारद हो जाती है और बाजारवाद फलने-फूलने लगता है। यह सब इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि नीट मामले को लेकर जो खुलासे हुए हैं और जिस तरह से अदालत ने ग्रेस मार्क्स पाने वाले बच्चों को दोबारा इम्तिहान देने को कहा है, उससे एक बात तो तय हो गई कि सब कुछ सही नहीं है। घपले पर घपला तो यह रहा कि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट-यूजी 2024 में कथित विसंगतियों के आरोपों के बीच परीक्षा का आयोजन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने इसकी गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष प्रदीप कुमार जोशी को ही जांच पैनल का प्रमुख नियुक्त कर दिया। इस फैसले की भी खूब आलोचना हुई है। इस निर्णय के बाद जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजमी था, सो वही हो रहा है।
वैसे देखा जाए तो नीट एग्जाम के नाम पर एक अनैतिक व्यवसाय ने जगह ले ली है। इसके पीछे खरबों रुपयों के घपला-घोटाले का खेल भी चलता नजर आ रहा है, जिसे लेकर समय-समय पर चर्चाएं तो होती हैं, लेकिन कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाने की स्थिति में परिणाम भी नहीं मिल पाता है। इस स्थिति में तमाम कोशिशें ढाक के तीन पात साबित होती हैं। इसमें पिसते हैं वो मासूम बच्चे जो मेडिकल में अपना भविष्य बनाने के लिए उस व्यवस्था का हिस्सा बनने की कोशिश करते हैं, जिसमें जाकर वो अपने आप को पूंजीवादी मकड़जाल में फंसा हुआ पाते हैं। इनमें से जो हिम्मत हार जाते हैं वो समय पूर्व ही मौत को गले लगा अपने पीछे एक दर्दभरी दास्तां छोड़ जाते हैं। इन बच्चों के माता-पिता के दिल से पूछिए वो किस स्थिति में फिर जीते हैं। तिल-तिल कर मरने को जीवन तो नहीं कहा जा सकता है। जिन पालकों के बच्चे नीट की तैयारी करते हैं, उनके दिलों से पूछिए वो कभी चैन की नींद भी सो पाते हैं? ऐसे पालक और अभिभावक किसे दोष दें और किसे कोसें, शायद उन्हें खुद भी समझ नहीं आता है। नियति का खेल समझ सब सहते हैं और अंतत: सामने आता है एक नीट घोटाला जो अदालत तक जाकर भी अनसुलझा प्रतीत होता है।
दरअसल पिछले दिनों जिस तरह से नीट पेपर लीक होने के आरोप लगे और फिर रिजल्ट को लेकर सड़क पर प्रदर्शन से लेकर अदालत तक जो आवाजें उठीं उसने इस गोरखधंधे से पर्दा उठाने का कार्य तो कर ही दिया है। गौर करें छात्र-छात्राएं अपनी तीन मांगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाते हैं। इनकी पहली मांग होती है, कांउसलिंग को रोका जाए। कोर्ट सुनवाई करते हुए कहता है, काउंसलिंग को रोका तो नहीं जा सकता। फिर मामला आगे बढ़ता है तो समय बढ़ाते हुए 6 जुलाई से काउंसलिंग करने के आदेश दे दिए जाते हैं। दूसरी मांग ग्रेस मार्क्स प्रक्रिया को हटाया जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ग्रेस पाने वाले 1563 विद्यार्थियों को दोबारा परीक्षा देने का मौका देते हुए 23 जून को परीक्षा और 30 जून को रिजल्ट देने का आदेश दे देता है। इसे लेकर कहा जाता है कि जिन बच्चों ने ईमानदारी से एग्जाम दिया और अच्छे मार्क्स पाए हैं उन पर दोबारा एग्जाम गाज गिरने जैसी बात है। मतलब एक चोर को पकड़ने के लिए तमाम मासूमों को शक के दायरे में ले लिया गया है। बहरहाल तीसरी मांग जो सबसे अहम कही जा रही थी वह, पेपर लीक की एसआईटी जांच हो। अब जबकि अदालत ने ग्रेस मार्क्स पाए बच्चों को दोबारा एग्जाम देने और काउंसलिंग नहीं रोके जाने के लिए कह दिया है, ऐसे में यह मांग बेमानी प्रतीत होती है। दरअसल नीट में हुए घपले-घोटाले की इसे पहली सीढ़ी माना जाना चाहिए था, जिससे आगे के सभी तार जुड़ते हैं। मजेदार बात यह है कि एनटीए ने पेपर लीक होने से साफ इंकार कर दिया, लेकिन फिर यह क्यों मान लिया कि अनियमितताएं हुईं हैं जो अब सभी के सामने हैं। इसलिए यह तो सभी समझ रहे हैं कि नीट एग्जाम के नाम पर बड़ा घोटाला हुआ है और इस घालमेल में सभी सहभागी हैं, जिस कारण अब लीपापोती करने की कोशिश बड़े पैमाने पर की जा रही है। मौजूदा मामले में तो करोड़ों रुपयों के लेन-देन के आरोप भी लगे हैं, जिनमें कुछ खास कोचिंग सेंटर पर सुई अटकी हुई है। इस तरह नीट परीक्षा में बैठने के लिए दी जाने वाली करोड़ों की फीस के अतिरिक्त जो पैसों का खेल खेला गया वह अब उजागर होने की स्थिति में आ गया है, बस जरुरत कर्तव्यनिष्ठ ईमानदारी के साथ जांच और उसके रिजल्ट को सभी के सामने लाने की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अभी भारत में कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर के किरदार जीवित हैं, जो किसी बिगाड़ के डर से क्या ईमान की बात नहीं कहेंगे। ऐसे जिम्मेदार पंचों को यह याद रखना होगा कि देश का आम नागरिक एक बार यह कहने का अवसर चाहता है कि पंच में परमेश्वर वास करते हैं…। देखना होगा यह कैसे संभव हो पाता है, क्योंकि कहा तो यही जाता है कि नामुमकिन कुछ भी नहीं।
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