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इंडो-इस्लामिक शैली में बना है ये ‘हाथी महल’, अब बना दिया गया मकबरा..

इंडो-इस्लामिक शैली में बना है ये ‘हाथी महल’, अब बना दिया गया मकबरा..

अगर आप ‘हाथी महल’ देखना चाहते हैं तो आपको दिल्ली से 897 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी। तब जाकर आप मध्यप्रदेश के पुराने शहर मांडू पहुंचेंगे। यहां आपको इंडो-इस्लामिक वास्तुशैली में बना हाथी महल देखने को मिलेगा। हाथी महल, मांडू का सबसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। वैसे तो माडू में कई प्राचीन इमारते और खंडहर मौजूद हैं लेकिन हाथी महल की लोकप्रियता की बात ही कुछ और है।

हाथी महल की दूरी माडू बस स्टॉप से महज 2 किलोमीटर है। विशाल स्तंभों वाला हाथी महल समुद्र तल से 600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बताया जाता है कि इसे पहले शाही आवास के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में मकबरे में तब्दील कर दिया गया। हाथी महल की विशाल गुंबदें आपको प्राचीनता और ऐतिहासिकता दोनों का ही अहसास कराएंगी।

हाथी महल 16वीं शताब्दी में बनाया गया था। 18वीं सदी तक यह महल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया था। अब ये जगह दरिया खान के मकबरे के रूप में जानी जाती है। यह मकबरा देखने में बेहद खूबसूरत है जो कि भारतीय और इस्लामिक वास्तुशैली की अनूठी मिशाल है। मध्यप्रदेश की सैर पर जाने वाले पर्यटक मांडू जरूर जाते हैं। मांडू का हाथी महल इतना विशाल है कि इसे घूमने में आपको एक से दो घंटे आसानी से लग जाएंगे।

हाथी महल की वास्‍तुकला

‘हाथी महल’ में अनेक विशाल स्तंभ हैं और इसी वजह से इस महल का ये नाम रखा गया है। इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली में बना ये महल समुद्र तल से 600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भव्‍य पत्‍थर से मंदिर की संरचना की है। इस महल को शाही आवास के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में इसे एक सुंदर मकबरे में बदल दिया गया। इस महल के आंतरिक और बाहरी हिस्सों में कुछ कब्रें देख सकते हैं।

इस्लामी शैली में बनी खूबसूरत मस्जिद को भी आप यहां देख सकते हैं। इस महल का सबसे शानदार हिस्सा हाथी पैलेस के बीच में इसका भव्य गुंबद है। महल के अंदर जो विशालकाय खंभे हैं उन्‍हीं की वजह से विशाल गुंबद पूरी तरह से संतुलित खड़ा है। इस प्रकार वास्तु की दृष्टि से इसका बहुत महत्व है। हाथी महल अत्‍यंत भव्‍य और इसे बनाने वाले कारीगर भी बहुत उत्‍कृष्‍ट रहे होंगे।

हाथी महल का इतिहास

मांडू गांव में हाथी महल के लिए आप कोई और नाम सोच सकते हैं? जी हां यहां पर हाथी महल को मांडवगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। 11वीं शताब्दी के बाद से इस जगह को महत्‍व मिलना शुरु हुआ है।

इस ऐतिहासिक और संस्‍कृति से समृद्ध स्‍थान को तारंग साम्राज्य द्वारा बनवाया गया था। यह महल अंततः 16वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया था। हालांकि, यह 12वीं शताब्दी से मुगलों और खिलजी शासकों के आक्रामक नियंत्रण के अधीन था और औपनिवेशिक युग तक उनके ही अधीन रहा था। हालांकि, तरांग साम्राज्‍य का अधिक समय तक इस पर शासन नहीं रहा था। 18वीं सदी तक यह महल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन चुका था। अब ये जगह दरिया खान के मकबरे के रूप में स्थापित है। इस महल में ये मकबरा काफी महत्‍वपूर्ण हो गया है एवं इसका लाल रंग दूर से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

पर्यटन की दृष्टि से महत्‍व

इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि हाथी महल को अब एक विरासत स्थल कहा जाता है और पर्यटकों को ये जगह बहुत पसंद आती है। यह एक गौरवशाली इमारत है जो लंबे समय से इतिहास के पन्‍नों में कायम है। ये इस्लामी वास्तुकला के असाधारण स्थानों में से एक है।

मध्य प्रदेश आने पर इस ऐतिहासिक और विशाल पर्यटन स्‍थल की यात्रा जरूर करें। भारत के मध्‍य प्रांत के इतिहास के बारे में जानने के लिए ये महल उपयुक्‍त है।

समय : आप किसी भी समय इस महल के दर्शन करने आ सकते हैं। हालांकि, सूर्योदय से लेकर सूर्यास्‍त तक का समय सबसे ठीक रहता है।

एंट्री फीस : हाथी महल में प्रवेश पूरी तरह से फ्री है।

समय अवधि : इस पूरे महल को देखने में 1 से 1.5 घंटे का समय लगता है।

मांडू कैसे पहुंचे

वायु मार्ग द्वारा: इसका हवाई अड्डा निश्चित रूप से इंदौर में है जो कि लगभग 99 किमी दूर है। यहां पर इंदौर, दिल्ली, मुंबई, ग्वालियर के साथ-साथ भोपाल जैसे शहरों से फ्लाइटें आती हैं।

रेल मार्ग द्वारा: इसका नजदीकी रेलवे स्‍टेशन रतलाम है। इस रेलवे स्‍टेशन पर सभी प्रमुख शहरों से नियमिन ट्रेनें आती हैं।

सड़क मार्ग द्वारा: सड़क मार्ग की बात करें तो मांडू अन्य शहरों से अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह उज्जैन से 154 किमी, धार से लगभग 35 किमी और भोपाल से लगभग 285 किमी दूर है।

मांडू बस स्टॉप से हाथी महल सिर्फ 2 किमी दूर है।

सियासी मियार की रिपोर्ट