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सत्कर्मो से बनती है भाग्यरेखा..

सत्कर्मो से बनती है भाग्यरेखा..

विश्व विजेता नेपोलियन को अपने अदम्य साहस और आत्मबल पर पूरा विश्वास था। एक बार एक ज्योतिषि ने उनसे कहा कि तुम्हारे भाग्यरेखा पर कुछ नहीं लिखा है। तब नेपोलियन चाकू निकाली और अपने हथेली पर चाकू से अपनी भाग्य रेखा खुद बना ली। ज्योतिष डर गया। उस भयभीत ज्योतिष को नेपोलियन ने कहा भाग्य हाथ की रेखाओं पर नहीं जीवन की सद्कर्मो की रेखा पर निर्भर होती है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा कि धर्म ही निःस्वार्थ की कसौटी है जो जितना अधिक निःस्वार्थ है। वह उतना ही अधिक आध्याधिक और शिव के समीप है। यदि वह स्वार्थी है तो मंदिरों के दर्शन कर लिए हो चाहे सभी तीर्थों का भ्रमण कर लिया हो वह शिव से बहुत दूर है।

पिता ने पुत्र से कहा इस डोर के कारण ही पतंग आकाश में उड़ रही है डोर ही पतंग का आधार है और वह आकाश की ऊंचाईयों को छू रहा है। पुत्र ने पूछा कैसे-पिता ने तुरंत डोर काट दी और पतंग देखते ही देखते नीचे आ गिरी।

मरते वक्त सिकंदर ने अपने वजीर से कहा जब मुझे दफनाने के लिए ले जाया जाये मेरे दोनों हाथ ताबूत से बाहर ही रखना ताकि दुनिया को यह अक्ल मिल सके अंतिम समय में विश्व विजेता के दोनों हाथ खाली थे। इससे लोगों को संदेश मिल जायेगा कि समय रहते ही जो बनना चाहते हो बन जाओ नहीं तो खाली हाथ ही जाना पड़ेगा। एक संत थे। पेशे से जुलाहा थे धोती बुनकर बाजार में बेचते थे। बाजार में एक उपद्रवी युवक ने एक धोती का कीमत पूछा तब संत ने कहा धोती की कीमत 200 रुपए है।

उस युवक ने धोती के दो टुकड़े कर दाम पूछा संथ ने कहा 100 रुपए वह मसखरा युवक धोती फाडने लगा और संत दाम घटा-घटा कर बताने लगा। जब धोती के इतने टुकड़े हो गये कि उसे दाम बताते नहीं बना। युवक समझ गया कि वह कोई व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व है। उसे बड़ा दुख हुआ। 200 रुपए संत को देते हुए क्षमायाचना करने लगा। संत ने उसे क्षमा करते हुए कहा कि ये लोग तुम्हारे 200 रुपए घर से जिस काम के लिए रुपये लेकर निकले थे। उसे पूरा कर डालो। मैं धोती और बुन लूंगा। युवक के आंसू डबडबा गया मानो कह रही हो इतनी शांति, धैर्य, इतनी क्षमा धन्य हो संत तिरूवत्लुवर धन्य हो।

एक व्यक्ति अमीर बनने की कामना से एक संत के पास गया। संयासी के बहुत समझाने पर कि मेरे पास कुछ नहीं है मैं क्या हूं वह युवक नहीं माना तब संत ने कहा जाओ नदी के किनारे एक पारस का टु

कड़ा पड़ा हुआ है उसे मैंने फेंका है। उसे ले आओ उससे सोना बनता है। युवक पारस टुकड़ा उठा ले लाया और घर की ओर चलने लगा कुछ दूर जाने पर उसे विचार आया और उलटे पांव वापस आकर सन्यासी के चरणों में गिरकर कहा-बाबा मुझे वह चाहिए जिसे पाकर आपने पारस को ठुकराया है। ये लीजिए आपका पारस। तब बाबा ने कहा ठीक है-आप अपने तृष्णाओं को छोड़ दो छोड़ते ही सब कुछ स्वयं ही मिल जाएगा।

सियासी मीयर की रिपोर्ट