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मुसीबत में ज्ञान रक्षा करता है..

मुसीबत में ज्ञान रक्षा करता है..

-ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय-

मनुष्य को अपने अच्छे समय में ही अपने शुभ कर्मों के प्रति सजग रहकर ईश्वर का ध्यान, वन्दना अवश्य करते रहना चाहिए। इससे भविष्य में आने वाले दुःखों के संकट कट जाते हैं। सदियों से कहा जाता है कि ज्ञान की बात जहां से मिले, हर जगह से प्राप्त करें, ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता है, हर जगह काम आता है, मुसीबत में ज्ञान रक्षा करता है। पुराने जमाने की बात है, एक व्यक्ति था जो चोरी कर अपना जीवनयापन करता था और वह चोरी करते कभी नहीं पकड़ा गया, जब वह मरने लगा तो उसने अपने पुत्र को बुलाकर कहा कि, ‘बेटा, जब भी चोरी करना, तो मेरी दो बातों को हमेशा ध्यान रखना।

पहली बात, अगर दुर्भाग्यवश चोरी करते कभी भी पकडे़ जाओ, तो कभी भी इस बात को मत कुबूल करना कि तुमने चोरी की है, भले ही लोग तुम्हें कितना भी मारें। दूसरी बात, कभी भी किसी भी महात्मा के सत्संग अथवा धर्मस्थल में चोरी मत करना, और अगर किसी कारणवश वहां जाना भी पड़े तो यह ध्यान रखना कि सत्संग की एक भी बात तुम्हारे कानों में न पड़े, उसके लिए चाहें तुम्हें अपने कान भी बन्द क्यों न करने पड़े।’

पिता के मरने के बाद एक बार की बात है कि बेटा चोरी करते हुए पकड़ा गया, सिपाहियों से बचकर वह एक महात्मा के सत्संग में जा बैठा, सत्संग चल रहा था। पिता की बात याद करके उसने अपने दोनों कानों में उंगली डाल लीं ताकि सत्संग की कोई बात उसके कानों में न चली जाऐं, लेकिन कान बंद करते-करते एक बात उसने गलती से सुन ही ली फिर कुछ देर बाद सिपाहियों ने उसे खोजकर पकड़ ही लिया। जिस राज्य में उसने चोरी की थी, वहां के राजा का नियम था, कि वह चोरी कबूल करने पर ही चोर को मृत्युदण्ड देता था। चोर को खूब मारा-पीटा गया कि वह अपनी चोरी कबूल कर ले, लेकिन जब किसी भी रूप में चोर, चोरी की बात कबूलने के लिए तैयार न हुआ तो मंत्री ने कहा कि, ‘जब आदमी किसी भी मुसीबत में फंस जाता है, तब वह अपने इष्ट देवी-देवता को जरूर याद करता है।’

उन लोगों ने देखा कि चोर बीच-बीच में देवी से प्रार्थना कर रहा था, अतः जुर्म कबूल करवाने के लिए एक योजना बनाई गई, एक महिला ने देवी का रूप धारण किया और जैसे ही चोर के पास अंधेरी कालकोठरी की तरफ बड़ी, जेल के दरवाजों को अपने आप खोल दिया गया और अंधेरे कमरे में अचानक रोशनी की गई, जिससे चोर को यकीन हो जाए कि देवी प्रकट हो गईं। देवी रूपी महिला ने कहा, ‘भक्त! तू मुझे सच्चे मन से याद कर रहा है, इसलिए मैं प्रकट हो गई हूं। तुने अच्छा किया, चोरी की बात सिपाहियों को नहीं बताई, वरना वे तुझे मृत्युदण्ड दे देते, मैं तुझे यहां से मुक्त कर दूंगी, तूने अगर चोरी की है तो मुझे सच बता दे।’

वह चोर बहुत बड़ा देवी भक्त था, देवी को सामने खड़ा देखकर वह सच बताने ही वाला था, तभी उसकी नज़र देवी की परछाई पर पड़ी। सत्संग में चोर ने कान बंद करते समय केवल एक ही बात सुनी थी, कि देवी-देवताओं की परछाई नहीं होती। वह जान गया कि उसके साथ छल हो रहा है, इसलिए वह सचेत होकर बोला, ‘देवी मां! मैनें चोरी नहीं की है, आप तो सर्वव्यापी हैं, आप तो जानती ही हैं।’ कोई सबूत न मिलने पर चोर को मुक्त कर दिया गया। चोर ने सोचा जब सत्संग का एक वचन सुनने से कारावास और मृत्युदण्ड से वह बच गया तो जीवन भर सत्संग एवं ज्ञान आदि मिलने से जन्म-मरण से मुक्ति अवश्य मिलेगी। उसने चोरी करना छोड़कर सन्यास धारण कर लिया।

जीवन को परम उपयोगी बनाने के लिए अच्छी-अच्छी बातों का संग्रह एवं मनन अवश्य करना चाहिए। सतसंग के रूप में प्राप्त ज्ञान न केवल आंतरिक उर्जा का विकास करता है बल्कि आगे चलकर व्यक्ति को सफलता के शिखर पर पहुंचाता है और हर प्रकार से रक्षा ही करता है। जब भी कोई व्यक्ति अपने गुरू अथवा ज्ञानी के सानिध्य में आता है और ज्ञान भरी बातों पर अमल करता है, तब व्यक्ति की चेतना बदल जाती है, नकारात्मक भावनाऐं भी सकारात्मक भावनओं में तब्दील हो जाती हैं।

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