पुस्तक समीक्षा : ताजी हवा के झोंके का अहसास कराती कविताएं…

कृति : दरकती हवाएं
विधा : कविता
कवि : मानवेंद्र सिंह यायावर
प्रकाशन : प्रकाशन संस्थान, दरियागंज, दिल्ली
मूल्य : 80 रुपए
हाल ही में मानवेंद्र सिंह यायावर का कविता संग्रह दरकती हवाएं (2015) सामने आया है। इस संग्रह की कविताएं हमारे परिवेश, व्यवस्था और समाज को लेकर गढ़ी गई हैं। सामाजिक सरोकार को लेकर लिखी गई इन कविताओं में एक अजब सी छटपटाहट दिखती है। ये कृतियां वर्तमान परिवेश के हिसाब से लिखी गई है। इसका शीर्षक ही अपने आप में बहुत कुछ कहता है।
यायावर की कृतियां नए कवियों की रचनाओं की भीड़ के बीच से कुछ ऐसा ही अहसास जगाती हुआ हमारी ओर लपकती है, एकदम ताजी हवा की खुशबू-सी छोड़ती हुई। इस संग्रह में अलग-अलग शेड्स की कविताएं हैं, जो इस कवि की अनुभव- संपन्नता की पहचान कराती हैं। साथ ही इनमें भावों का भी ऐसा वैविध्य है, जो इन्हें पढ़ते समय हमारे मन में स्मृतियों और चेतना की नई-नई खिड़कियां खोल देता है।
इनमें कहीं आज के समय की विकट स्थिति की चिन्ता हैं, कहीं देश की व्यवस्था व राजनीति के प्रति आक्रोश है, कहीं पारिवारिक रिश्तों से जुड़ी संवेदनाओं को रेखांकित करती मार्मिकता है, कहीं रोचक एवं एक अलग किस्म का दृष्टिकोण रखता स्त्री-विमर्श है और कहीं जीवन के ऐसे राग-रंग हैं जो हमें अपने ही सुख-दुख का अहसास कराते हुए से लगते हैं।
इस संग्रह की अनेक कविताएं आत्मवृत्तात्मक हैं, जो यह स्वतःसिद्ध कर देती हैं कि इनमें कवि के अपने ही जीवन के अनुभव रचे-बसे हैं, हालांकि ऐसी सारी ही कविताओं में इन निजी अनुभवों के दायरे में यायावर ने आज के सामाजिक परिवेश के दरकते ताने-बाने को समेटा है। जो बात इस संग्रह के बारे में सबसे अच्छी लगी, वह है इसकी भाषा की सरलता व अकृत्रिमता और वह भी सपाटबयानी से लगभग पूरी तरह से बचते हुए।
सियासी मियार की रीपोर्ट