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बच्चा..

बच्चा..

-ज्ञानप्रकाश विवेक-

गुट खुलने की आवाज-सी आई। मैंने एक पल के लिए अपना ध्यान आवाज पर केंद्रित किया। गर्मी के दिन थे। गली वीरान थी। मैंने जाली वाला दरवाजा बंद कर रखा था। चिटखनी नहीं लगाई थी। मेरा ध्यान अब भी गेट की तरफ था। गेट खुलने की आवाज आई जरूर थी।
अचानक जाली वाला दरवाजा खुला। एक बच्चे ने दरवाजे को आधा खोलते हुए और उसमें से अपने चेहरे को निकालते हुए मुझे देखा। मुझे देखकर मुस्कराया। मैंने उसे हैरान होकर देखा। लेकिन वह मुस्कराया, तो मैं भी मुस्कराया। फिर वह झीनी-सी मुस्कान लोप हो गई। मैं कुछ कहता कि वह बड़ी प्यारी-सी आवाज में बोला, हम आ जाएं?
जैसे घंटियां-सी बज उठी हों। उसके इस छोटे-से प्रश्न में कशिश थी, संगीत था, आदाब था। वह अंदर आने के लिए पूछ रहा था। लेकिन उसने प्रतीक्षा नहीं की। शर्माता-लजाता, छोटे-छोटे कदम रखता कमरे में चला आया था। उसकी आंखों में कौतूहल था। अजनबीयत का अहसास और थोड़ा-सा भय। वह आहिस्ता से चलता हुआ आया। वह मेरे सामने वाले सोफे पर थोड़ा टिक-सा गया। उसे बैठना नहीं कहेंगे। शायद पराए घरों में अजनबी बच्चे इसी तरह बैठते हों।
मैंने कहा, बेटे आराम से बैठ जाओ।
बैठा हुआ तो हूं। उसने मेरी गलती में सुधार किया। अपनी बात कहकर वह तुरंत उठ खड़ा हुआ। बोला, देखो, अंकल, अब खड़ा हूं। और अब… पुनः बैठते हुए बोला, अब बैठ गया न? उसने मेरा समर्थन चाहा।
मैंने हां में सिर हिलाया। कुछ क्षण यों ही गुजर गए। इस बीच वह कई बार मुस्कराया। शायद मुस्कराते हुए वह दोस्ती का माहौल पैदा करना चाहता हो। मैंने मुस्कराने की कोशिश की।
मैं बहुत कम हंसता हूं। मुस्कराता भी कम ही हूं। मेरे दोस्त कहते हैं कि मैं अपनी जिंदगी की मुस्कान गिरवी रख चुका हूं। पता नहीं यह जुमला है या मेरी जिंदगी का सच। पर मेरी जिंदगी का सच कुछ और है। मुझे लगता है, चुटकुलों की सारी किताबें पुरानी पड़ चुकी हैं। यह वह नामाकूल दौर है, जिसमें लतीफेबाज जब मिलते हैं, तो बा-चश्मेनम मिलते हैं।
मुझे लगा, बच्चे से कुछ बोलना चाहिए।
मैंने पूछा, बेटे, आपका नाम क्या है?
गुद बॉय! उसने कहा।
गुड बॉय?
हां, गुद बॉय!
गुड बॉय कोई नाम होता है? मैंने सवाल किया।
तो क्या बैद बॉय नाम होता है? उसने कहा। उसका तर्क वाजिब था। मैं हंस पड़ा। मुझे हंसते देख वह भी हंसने लगा। उसके छोटे-मोटे सफेद दांत चमक रहे थे। गालों में गड्ढे उभर आए थे। आंखें थोड़ी मुंद गई थीं। हंसते हुए वह बहुत भोला, बहुत सुंदर लग रहा थाकृ किसी झरने जैसा।
वह, पता नहीं, तीन-साढ़े तीन या चार साल का होगा। गोरा-चिट्टा, करीने से सेट किए बाल, अच्छी ड्रेस, शूज और निक्कर के साथ लटकती हैंकी। वह शायद पड़ोस के किसी घर से चला आया होगा।
तुम्हारा यह नाम गुड बॉय किसने रखा?
मम्मी ने। उसने कहा।
और पापा?
वो तो हैं नई।
कहां गए? मैंने पूछा।
पता नईं। फिर रुककर उसने समझाने वाले लहजे में कहा, मम्मी कहती हैं कि वो भगवान जी के पास चले गए।
बच्चा समझदार था। जो नहीं था, वह उसकी बात नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने बात बदलते हुए निक्कर के साथ बंधा हैंकी दिखाते हुए कहा, अंकल, मेरी हैंकी! मम्मी लाई थीं।
उसने रहस्य से परदा हटाते हुए कहा, मम्मी जेब में रूमाल रखती हैं, तो मैं गुम कर देता हूं। इसलिए मम्मी यहां पे बांध देती हैं।
वेरी गुड!
वेरी गुद क्यों, अंकल? नोजी आ जाए, तो कोई वेरी गुद होता है? उसने तर्क पेश किया। अपनी उंगली से नाक की तरफ इशारा करते हुए कहा, अंकल, नाक में नोजी नई है न?
नहीं, बिलकुल साफ है। मैंने कहा।
वेरी गुद! वह बोला। थोड़ा हंसा। उसके वेरी गुद कहने पर मुझे भी हंसी आ गई। वह शायद मुझे समझाना चाहता था कि वेरी गुड कहां बोलना चाहिए।
नाक को सिकोड़ना, ठुड्डी को ऊपर उठाना, शूं-शूं, फूं-फूं की आवाजें निकालना दृ मुझे लगा, वह कोई खेल खेल रहा है। मैंने उसकी इन हरकतों को देखते हुए कहा, नॉटी बॉय!
वह मेरी तरफ देखने लगा। उसने शूं-शूं, फूं-फूं बंद कर दी। थोड़ा तनकर खड़ा हो गया। बनावटी गुस्सा उसके चेहरे पर उतर आया। मैं थोड़ा डर-सा गया। अंकल, मैंने आपका गिलास नईं तोड़ा न? उसने पूछा। मैंने उसकी बात का जवाब दिया, नहीं।
कप? उसने पूछा।
नहीं, वो भी नहीं तोड़ा। मैंने कहा।
प्लेट?
वो भी नहीं।
कागज फाड़े?
नहीं।
दीवार पर कुच्च लिक्का?
नहीं।
अंकल, फिर आपने मुझे नॉटी बॉय क्यों कहा? जब मैंने कोई शरारत नईं की, फिर तो मैं गुद बॉय हुआ।
उसके तर्क, उसके सवालों ने मुझे मुग्ध-सा कर दिया। मैं ठहाके से लगाकर हंसा। वह भी हंसा। बच्चा हंस रहा था। बहुत देर तक हंसते रहने से उसकी आंखों से पानी आ गया था। पानी आंखों में चमकने लगा था। लेकिन वह बेपरवाह था। तालियां बजा रहा था और हंस रहा था। उसके साथ मैं भी हंस रहा था। उसकी हंसी निरंतर और निश्छल हंसी थी। मेरी हंसी में वक्त की खराशें थीं।
मुझे लगा, मेरे चुपजदा कमरे में कोई चला आया हैकृ आवाजों का छोटा-सा टापू। या रोशनी का छोटा-सा सूरज। या मासूमियत का आकाश, जिसमें उड़ान के हजारों परिंदे हैं। फिर वह उठा। उसने कमरे का चक्कर लगाया। वह बिलकुल आहिस्ता-आहिस्ता, हवा की तरह दबे पांव, थोड़ा सकुचाते हुए, एक कमरे से दूसरे कमरे में गया। खड़ा रहा। देखता-सा। पता नहीं, क्या ढूंढ़ रहा था। फिर वह आंगन में चला गया। फिर गमलों के पास।
फिर वह लौट आया। वैसे ही थोड़ा-सा टिककर बैठ गया।
अंकल, भौत सारे फ्लावर हैं न बाअर?
आपको चाहिए? मैंने कहा।
नईं अंकल, आपको पता नईं, फूल तोड़ने से पाप चढ़ता है? मेरी मम्मी को सब पता है, जी!
वह जब अपनी मम्मी की बात करता, उसके चेहरे पर गर्व-सा दिपदिपाने लगता।
वो कहती हैं… उसने कुछ कहना चाहा। लेकिन उससे पहले एक जरूरी सूचना उसने सुनाई, मेरी मम्मी भौत अच्छी है। भौत अच्छी हैं, जी! फिर अपनी पुरानी बात पर लौटते हुए बोला, वो कहती हैं, फूल तोड़ो तो फूलों को उई हो जाती है।
मैं उसकी तरफ देख रहा था। फूलों को उई? उसने जैसे बड़े ज्ञान की बात बताई हो। मैं उसके ज्ञान से प्रभावित हो रहा था।
मेरे को भौत सारी आइसक्रीमों के नाम पता हैं, मैंने सब खाई है। उसने कहा। वह बताना चाहता था कि उसे सिर्फ चॉकलेटों के ही नहीं, और भी बहुत-सी चीजों के बारे में पता है।
कौन-कौन-सी आइसक्रीमें खाई हैं तुमने?
वह उठ खड़ा हुआ। एक बार सोफे के पास घूम गया। उसने सोफे के आसपास दो-तीन चक्कर लगाए। जेब से कोई सीटी जैसी चीज निकाली। मुंह में रखकर बजाने की कोशिश की। बजी नहीं। नहीं बजी तो न सही। वह खुद मुंह से पीं-पीं की आवाज निकालता हुआ दूर तक चला गया। पीं-पीं करता जैसे गया था, वैसे ही लौट आया। मेरे सोफे के पास आकर बोला, आपने लेज खाया है कब्बी?
नहीं।
कुरकुरे?
नहीं, वो भी नहीं खाए।
अंकल चिप्स?
वो भी नहीं। मैंने कहा।
आपने कुच्च भी नईं खाया। मैंने तो सब खाए हैं। मम्मी लेके देती हैं। मैंने चुइंगम भी खाई है। सेंटल फरेस। और एल्पेनलीबे भी खाई है, एक्लेयर भी खाई है, कॉफी बाइट भी खाई है।
बहुत सारी चीजें खाई हैं तुमने तो! मैंने हैरानी-सी जताई।
अचानक मुझे ध्यान आया, बच्चे ने पानी नहीं पिया बहुत देर से। इसे प्यास लगी होगी। मैंने पूछा, नींबू पानी पियोगे?
रसना पिऊंगा। उसने कहा। मैंने रसना के दो गिलास बनाए। आइसट्रे से बर्फ के क्यूब मिलाने लगा, तो वह झटपट बोला, अंकल, एक कूब मुझे दे दो।
क्या करोगे?
खेलूंगा।
मैंने एक क्यूब उसे दे दिया।
उसने वही तो किया, जो मैं सोच रहा था। वह बर्फ के क्यूब को मुट्ठीय में दबाता, फिर खोलता। क्यूब को अपने गालों के आसपास घुमाता। क्यूब को स्टापू-सा बनाते हुए फर्श पर फेंकता। क्यूब फिसलता चला जाता। वह उसके पीछे भागता, पकड़ता। फिर कोई नया खेल।
मैं धीरे-धीरे रसना पी रहा था। उसका गिलास मेज पर रखा था।
इस बीच कमरे में शांति-सी छा गई। मुझे लगा, बच्चा बाहर आंगन की तरफ चला गया होगा। बाहर का फर्श गरम होगा। क्यूब जल्दी पिघल जाएगा।
अचानक मैं चैंक-सा गया। कुछ ठंडा-ठंडा-सा लगा। एकदम झुरझुरी-सी हुई। मैंने पलटकर देखा। बच्चा खिलखिलाकर हंसा। हंसता चला गया। यह उसकी शैतानी थी, जो सफल रही। सोफे के पास रखे स्टूल पर चढ़कर उसने मेरी गर्दन के पास, कॉलर के नीचे आइस क्यूब की बूंदें टपका दीं। मैं चैंक गया। वह किलकारी मारकर हंसा। मैं झेंप-सा गया।
आइस क्यूब पिघल गया था। आइस क्यूब का खेल समाप्त हो गया था। बच्चा अब सोफे पर टिक-सा गया। रसना का गिलास उठाया, पीने लगा। वह अपनी हर अदा में अच्छा लगता, अपनी हर शैतानी में प्यारा।
उसने आधा गिलास पिया दृ रख दिया। बोला, बाद में पिऊंगा। मेरा डिड्डू भर गया। फिर मेरी तरफ देखते हुए बोला, अंकल, आपको पता है, डिड्डू क्या होता है? अपने पेट पर हाथ फेरते हुए बोला, इसे डिड्डू कैते हैं। मेरा यई डिड्डू रसना से भर गया।
अचानक कुछ सोचते हुए मैंने पूछा, किधर रहते हो तुम?
वो…, उदर, उदर…। उसने खड़े होकर तर्जनी घुमाते हुए कहा। उसकी तर्जनी दसों दिशाओं में घूमती चली गई।
अचानक उसने अपना हाथ निक्कर की जेब में डाला। पांच का सिक्का निकालते हुए बोला, अंकल, मम्मी को मत बताना, इसकी मैं हाजमोला कैंडी लूंगा।
उसने मुझे अपना राजदां बनाया। मैं मन ही मन मुस्करा रहा था। उसे मुग्ध भाव से देख रहा था। कहते हैं, समंदर और बच्चा कभी स्थिर नहीं होते। यह बच्चा भी ऐसा ही था। जब से आया, कुछ न कुछ करता हुआ नजर आया। उसकी अपनी दुनिया थी- सरगर्म, तपिश भरी, रंगीन, खिलखिलाती, चहल-पहल से भरी, मासूम, बेबाक, कुछ-कुछ नाटकीय, कुछ-कुछ संकोची, कुछ-कुछ रहस्यमयी।
उसके आने के बाद से मैंने किताब नहीं खोली थी। जो मेरे सामने था, वह भी एक किताब जैसा था। एक ऐसी किताब, जिसे मैंने कभी नहीं पढ़ा था। वह बच्चा किताब भी नहीं था, जिंदगी की किताब से निकला कोई अक्स था, कोई इबारत, कोई तहरीर, कोई नगमा, कोई सिंफनी
अचानक उसने निक्कर की जेब में हाथ डाला। कई सारी चीजें निकालीं दृ शार्पनर, पेंसिल, रबड़, स्टिकर्स, टैटू, एल्पेनलीबे टॉफियां। उन सब चीजों को उसने सोफे के किनारे रखा। फिर सोफे पर पड़े कपड़े के नीचे छिपा-सा दिया। फिर मेरी ओर देखते हुए बोला, अंकल, बताओ, मैंने अपना सामान क्यों छिपाया?
नईं, मुझे बिल्कुल पता नईं। मैंने उसके लहजे में कहा।
अंकल, मैंने अपना सामान इसलिए छिपाया है कि कोई बच्चा मेरी चीजों को चुरा न ले।
फिर पेंसिल उठाकर मेज पर पड़े अखबार पर कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें खींचने लगा।
क्या लिख रहे हो तुम? मैंने पूछा।
उसने बिना सर उठाए मेरी बात का जवाब दिया, ए फॉर एपल, बी फॉर बैट, सी फॉर कैट लिख रहा हूं।
वेरी गुड! मैंने उसकी हौसलाअफजाई की।
उसने मेरी हौसलाअफजाई पर राख डालते हुए पूछा, अंकल, टी फॉर क्या होता है?
टी फॉर…। मैं सोचने लगा। सोचते हुए बोला, टी फॉर टेबल।
नो! टी फॉर होता है टेलीविजन! उसने सख्ती से कहा।
अंकल, जे फॉर क्या होता है? उसने फिर पूछा।
मुझे लगा, अब उसने फिर मुझे फंसा दिया है। मैंने जे फॉर जग बोला, तो उसने मेरा मजाक-सा उड़ाया, मेरे को मालूम था जी, आप नईं बता पाओगे। जे फॉर होता है जस्सी जैसी कोई नईं…
मेरी हंसी छूट पड़ी।
उसने फिर अजीब-सा सवाल किया, अंकल, आपको गुदगुदी होती है?
पहले होती थी। मैंने कहा।
मेरे को तो होती है। उसने गर्व से कहा।
मैं उसकी मासूमियत पर भावविभोर होता कि उसने मुझे एक और संकट में डाल दिया, अंकल, आपको गुदगुदी करूं?
इससे पहले कि मैं हां या ना में जवाब देता, वह मेरे सामने सोफे पर चढ़ गया। जैसे उसने मुझ पर चढ़ाई कर दी हो। फिर वह मेरे पेट को गुदगुदाने लगा। मैं हंसने लगा। वह भी हंसने लगा। एक अपरिचित बच्चा मुझे गुदगुदा रहा था। मैं खुलकर हंस रहा था। लगातार हंस रहा था। इतना ज्यादा मैं कभी नहीं हंसा था। मुझे लगता था, मेरे पास सब कुछ है, हंसी नहीं है। यह हंसी पता नहीं कहां से आई थी, जो मैं हंस रहा था। लगता था जैसे हम दो बच्चे हों। बहुत सालों से एक-दूसरे को जानते हों।
हंसते-हंसते उसकी सांस फूल गई। सांस मेरी भी कुछ-कुछ असामान्य हो गई थी। बोला, अंकल, आपकी मम्मी कहां हैं?
नहीं हैं।
मेरी तो हैं।
अच्छा! क्या करती हैं तुम्हारी मम्मी?
मेरे को प्यार करती हैं। उसने कहा।
मम्मी के बारे में वह कुछ और बताता कि बगीचे से उड़कर एक तितली ड्रॉइंगरूम में चली आई। उसने दो-तीन चक्कर काटे। एक बार तो वह कुर्सी की हत्थी पर भी बैठी। बच्चे की नजर तितली पर पड़ी। वह उसके पीछे भागा। तितली भी जैसे यही चाहती थी, खेल खेलना बच्चे के साथ।
बच्चा तितली के पीछे। तितली कभी शेल्फ पर, कभी परदे के ऊपर, कभी दीवार पर, कभी दीवार पर टंगी घड़ी पर। कभी मेज की टांग के साथ, कभी वॉशबेसिन की टोंटी पर, कभी हवा में तैरती, कभी बैठती। बच्चा उसके पीछे, जिधर तितली उधर बच्चा। मैं घबराया-सा, हैरान-परेशान-सा। घर में तितली, घर में बच्चा। घर में हंगामा, घर में ऊधम।
ताज्जुब था, मैं घर में था, लेकिन बच्चे को मेरी परवाह नहीं थी। जैसे वह मेरे घर में नहीं, अपने घर में हो।
आखरि तितली उड़कर कहीं बाहर चली गई। बच्चा अपने अभियान में असफल होकर, थोड़ा थककर लौट आया। वह हांफ रहा था। पसीना-पसीना हो गया था।
मुझे महसूस हुआ कि बच्चे को प्यास लगी है। मैं उठा, किचन में गया। फ्रिज से पानी की बोतल निकाली। गिलास में पानी डाला। वापस ड्राइंगरूम में आया। अवाक-सा रह गया मैं। बच्चा जा चुका था। मैं जब किचन में था, मुझे गेट के खुलने की आवाज आई जरूर थी, पर मैंने सोचा था, किसी दूसरे का गेट होगा।
फिर वही सन्नाटा था दृ बासी, उबाऊ। थका हुआ। सारी सरगोशियां समाप्त हो गई थीं। बच्चा अपने संसार के साथ आया था और अपने चपल-चंचल संसार को लेकर चला गया था। अचानक मेरी नजर सोफे पर पड़ी। स्टिकर्स, शार्पनर, पेंसिल, टैटू, एल्पेनलीबे की टॉफी और पांच का सिक्का। वह सब चीजें छोड़कर चला गया था। मैंने पानी का गिलास मेज पर रखा। उसकी सारी चीजें उठाई। बाहर गली में आ गया। वह दूर तक कहीं नजर नहीं आया। पता नहीं कहां गया होगा। न उसने मकान का नंबर बताया था न मम्मी का नाम। मैं इधर-उधर भागता फिरता रहा।
मैंने कई लोगों से पूछा। बच्चे को किसी ने नहीं देखा था। मैं बच्चे का हुलिया बताता। लोग नाम पूछते। नाम…? मैं याद करता। उसने अपना नाम गुद बॉय बताया था। लोग हंसते। मैं झेंप जाता।
एक नजर मैंने पार्क में भी डाली। बच्चा कहीं नहीं था।
उसका कीमती सामान मेरे हाथ में था। मेरे मन में व्याकुलता थी, बेचैनी और विचलन!
मैं वापस लौट आया। सोचने लगा-बच्चे के पास कितनी सारी आवाजें थीं। वह सारी आवाजें लेकर चला गया था। बच्चे के पास कितनी सारी मासूमियत थी! वह अपनी सारी मासूमियत लेकर चला गया था। और अपना कीमती सामान छोड़ गया था।
मैंने सोफे के किनारे, बिलकुल उसी जगह बच्चे का सामान छिपाकर रख दिया है। मुझे उम्मीद है, वह कल फिर आएगा। अपना कीमती सामान लेने या फिर तितली पकड़ने या फिर मुझे गुदगुदाने या फिर मुझे हंसाने या फिर…। मुझे उम्मीद है, वह कल आएगा।

सियासी मियार की रीपोर्ट