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एक कर्नल की दृष्टि से कश्मीर घाटी की कहानियां..

एक कर्नल की दृष्टि से कश्मीर घाटी की कहानियां..

कश्मीर भारत का एक ऐसा हिस्सा है जिसे सभी ने अलग-अलग दृष्टि से देखा। किसी ने इसे धरती का स्वर्ग कहा, तो किसी ने ऋषि कश्यप से आई सांस्कृतिक धरोहर माना। आम भारतीय ने आतंकवाद ग्रसित क्षेत्र के रूप में देखा तो सैलानियों ने खूबसूरती और वहाँ की जीवनशैली से जाना। पाकिस्तान ने कश्मीर को आतंकवाद का अड्डा बनाया तो दुनिया ने इसे विवादग्रस्त क्षेत्र माना।

इन सभी नजारियों के बीच एक अलग नजरिया उस फौजी का भी है जो हर रोज जान हथेली पर रखकर कश्मीर में अमन बनाये रखने के लिये खड़ा है। उस फौजी के लिये राहत की साँस कश्मीर के वो लोग हैं जो आतंक का खात्मा चाहते हैं और इसके लिये कोई मुखबिर भी बन जाता है। ऐसे ही एक फौजी कर्नल सुशील तंवर की नजर से उनका कहानी संग्रह ‘मुखबिर’ कश्मीर और वहाँ के लोगों को देखता है। इस संग्रह की सभी कहानियाँ कश्मीर में घुसपैठ, आतंकवाद, फौज की चुनौतियों, दुश्वारियाँ और मुखबिरों के बारे में हैं जो कई बार डबल एजेंट भी निकल आते हैं।

17 कहानियों के इस संग्रह की प्रत्येक कहानी एक अलग पहलू को उजागर करती है। पहली ही कहानी ऐसे व्यक्ति की है जिसकी पहचान ‘मुखबिर’ के रूप में हो चुकी, साथ ही उसे हर नए अफसर के आने पर अपनी विश्वसनीयता को साबित करना पड़ता है। ‘लव जिहाद’ ऐसे आतंकी की कहानी है जो स्थानीय लड़की के प्रेम में पड़ चुका है। पता लगने पर आर्मी अफसर प्रेमिका का इस्तेमाल आतंकी को मारने की जगह उसका हृदय परिवर्तन कर उसे वापस पाकिस्तान भेजने और अपना मुखबिर बनाने में करता है। ‘लाल रंग की जैकेट’ स्थानीय पुलिस और मुखबिर के उस धूर्तता को सामने लाता है जहाँ वह पैसे की खातिर किसी निर्दोष को घुसपैठिया साबित कर मरवाना चाहते हैं।

कर्नल तंवर ने इन कहानियों को बुनते वक्त कश्मीर के निर्दोष लोगों की व्यथा और उनकी अच्छाई को उजागर करने का भरपूर प्रयास किया है, तो वहीं ट्वेंटी-ट्वेंटी एवं इश्क मोहब्बत जैसी कहानियाँ आतंक समर्थकों द्वारा फौज के इस दोस्ताना रवैये का इस्तेमाल कर पीठ में छुरा घोंपने की घटनाएं भी सामने लाता है। फौज द्वारा बंदूक से इतर कश्मीरियों का विश्वास जीत कर उनके माध्यम से आतंक समाप्त करने की कोशिशें इन कहानियों में दिखती हैं जिनसे प्रायः आम नागरिक अनजान है।

यह कहानियाँ बेहद विश्वसनीय और पठनीय हैं क्योंकि लेखक ने किसी को भी हीरो या विलेन नहीं, एक इंसान के तौर पर प्रस्तुत किया है। लेखक कर्नल सुशील तंवर कई बार स्वयं आतंकियों से मुठभेड़ कर चुके, घायल हुए और साथ ही सेना की इन्टेलिजन्स विंग का भी हिस्सा रहे। उन्हें अपनी सैन्य कार्यकुशलता के लिये विशिष्ट सेवा मेडल मिल है। किताब राजपाल प्रकाशन से आई है और कीमत 325 रुपये है।

सियासी मियार की रीपोर्ट