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मुनीर की ‘गीदड़ भभकी’…

मुनीर की ‘गीदड़ भभकी’…

पाकिस्तान के फील्ड मार्शल एवं सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर एक कट्टरपंथी मौलवी ज्यादा हैं और एक पेशेवर सेनाध्यक्ष कम लगते हैं। वह दो माह के अंतराल में दूसरी बार अमरीका के दौरे पर हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के साथ मुलाकात भी तय है। क्या अमरीकी राष्ट्रपति ने ‘व्हाइट हाउस’ में राष्ट्राध्यक्ष अथवा शासनाध्यक्ष के बजाय सेना के जनरल से द्विपक्षीय मुलाकात की परंपरा शुरू कर दी है? जनरल मुनीर को अमरीका की सरजमीं से परमाणु हमले की धमकी देने की अनुमति क्यों दी गई? अमरीका तो भारत का मित्र और रणनीतिक साझेदार देश है। बेशक टैरिफ के मुद्दे पर विवाद है, लेकिन अमरीका ‘क्वाड’ जैसे संगठन में भी भारत का साथी देश है। ‘क्वाड’ का शिखर सम्मेलन भारत में ही होना है। ट्रंप उसे टाल नहीं सकते। बहरहाल पाक समुदाय को संबोधित करते हुए मुनीर ने लगभग पूरी दुनिया को धमकाया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है। यदि हम सोचते हैं कि हम हार रहे हैं, तो उससे पहले हम आधी दुनिया को नष्ट कर देंगे।’’ मुनीर के कथन के भाव यही थे। हालांकि उनका संबोधन अंग्रेजी भाषा में था। इससे पहले मुनीर ने सीधे भारत को धमकी दी थी कि हम सिंधु पर बांध बनाने का इंतजार कर रहे हैं। यदि ऐसा किया गया, तो हम बांध पर 10 मिसाइलों से हमला करेंगे। हमारे पास बहुत मिसाइलें हैं।’’ भारत ने मुनीर के इन शब्दों को ‘गीदड़ भभकी’ के तौर पर लिया और एक बार फिर साफ किया कि भारत परमाणु हमले की ‘ब्लैकमेल’ से नहीं डरता। कारगिल और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के युद्धनुमा संघर्षों के दौरान भी पाकिस्तान परमाणु शक्ति वाला देश था।

मुनीर अच्छी तरह जानते हैं कि पाकिस्तान को किस तरह घुटनों पर आना पड़ा? सबसे गौरतलब यह है कि आतंकवाद और पाकिस्तान को लेकर अमरीका और राष्ट्रपति ट्रंप का नजरिया क्यों बदल गया है? ट्रंप ने पहले राष्ट्रपति-काल के दौरान ही पाकिस्तान की अरबों डॉलर की आर्थिक मदद रद्द कर दी थी। तो क्या अब पाकिस्तान आतंकवाद-मुक्त देश लगता है? राष्ट्रपति ट्रंप इतना जरूर समझ लें कि पाकिस्तान के जनरल के प्रस्ताव पर ही उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने वाला नहीं है। फर्जी युद्धविराम के दावों के आधार पर भी सर्वोच्च शांति पुरस्कार से नहीं नवाजा जा सकता। नोबेल पुरस्कार समिति और ज्यूरी को सब जानकारियां होती हैं। अमरीकी राष्ट्रपति पाकिस्तान में क्या करना चाहते हैं, यह भी समूचे विश्व के संज्ञान में है। दरअसल अपने वजूद के 78 सालों के बावजूद पाकिस्तान की सियासत, हुकूमत और खासकर फौज ‘भारत-ग्रंथि’ से मुक्त नहीं हो पाई है। जनरल मुनीर ने अमरीका में कश्मीर पर वही जहर उगला है, जो पहलगाम नरसंहार से पहले एक और संबोधन में किया था। क्या सेना प्रमुख का यह भी काम होता है कि वह पाक समुदाय को भडक़ाए और सुलगाए? मुनीर के बयान बता रहे हैं कि उसकी महत्वाकांक्षा क्या है? पाकिस्तान का इतिहास उसके जनरलों की ऐसी महत्वाकांक्षाओं और उनकी कारस्तानियों से भरे हैं। मुनीर के संबोधन समझा रहे हैं कि आने वाला युद्ध ‘नई किस्म’ का होगा। यह ‘आर्थिक युद्ध’ भी हो सकता है, क्योंकि मुनीर ने रिलायंस इंडस्ट्रीज की गुजरात के जामनगर में स्थित रिफाइनरी को निशाना बनाने की कसम खाई है। यह विश्व की सबसे बड़ी रिफाइनरी है। मुनीर हरेक संदर्भ में पाकिस्तान को भारत का प्रतिद्वंद्वी देश चित्रित करना चाहता है, जबकि यथार्थ बिल्कुल भिन्न है। भारत की जीडीपी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था से 10 गुना ज्यादा है और यह अंतर चौड़ा होता जा रहा है। विश्व में भारत का जो दर्जा है, पाकिस्तान उस संदर्भ में दूर-दूर तक भी नहीं है। पाकिस्तान सब कुछ उधार मांग कर जीने वाला देश है। मुनीर सपने देखना चाहते हैं, तो कोई क्या कर सकता है?

सियासी मियार की रीपोर्ट