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बाग़ी बलिया रिव्यू : फिल्मी कहानी और देसीपन का तड़का…

बाग़ी बलिया रिव्यू : फिल्मी कहानी और देसीपन का तड़का…

किताब का नाम उस जिले के नाम पर है, जिसने ‘बग़ावत’ को अपना हमराह चुना। बलिया किसी और कारण से चर्चित हो न हो, राजनीति के लिए जरूर है। सो यह किताब भी उसी राजनीति की पाठशाला कहे जाने वाले ‘छात्रसंघ चुनाव’ की है। किताब में और भी बहुत कुछ है लेकिन मुख्यधारा यही है, बाकी सबकुछ सहायक नदियों की तरह है, जो इसी में गिर-गिरकर इसे और सशक्त करते जाती हैं।

इतिहास और राजनीति यूं तो पढ़ने के विषय हैं लेकिन इसे सही से समझा जाए तो बहुत ही मजेदार होता है। सत्य व्यास ने अपनी इस किताब में चुनाव के साथ-साथ इतिहास को बढ़िया से घोंटा है। कई सामाजिक बुराइयों जैसे- झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा, जातिवाद और ‘चुनाववाद’ पर भी कहानी के माध्यम से प्रकाश डालने की कोशिश हुई है। जो ज्यादा तो नहीं, हां कुछ हद तक कामयाब भी है।

थ्रिलर और मजबूत लिखाई
संभवत: किताब को फिल्म की तरह लिखने की कोशिश भी की गई है, इस वजह से नाटकीय चीजें आपको पहले से ही पता लग जाती हैं या आपके अनुमान सटीक बैठते हैं। कहानी थ्रिलर से भरपूर है। राजनीति, दोस्ती, चुनाव, समय, इश्क और रिश्तों का कॉकटेल इतना बढ़िया है कि आप कहीं पर भी बोर नहीं हो पाते हैं। कुल मिलाकर किताब आपको बांधे रखती है, जो लेखक के लिए काफी अच्छी बात है।

संवादों में कुछ देसीपन, कुछ नयापन और कुछ-कुछ सोशल मीडिया का असर दिखता है। आप सोशल मीडिया के ‘कीड़े’ हैं तो कुछ जगहों पर विचारों की पुनरावृत्ति या नकल भी आपको समझ आती है। हालांकि, बढ़िया अंदाज में लेखन और सामाजिक सरोकार से जुड़ी लेखक की समझ कही जगहों पर वर्तमान को आईना दिखाती है।

पूर्वांचलियों के लिए अपनी है यह किताब
अगर आप गांव से या छोटे शहरों से हैं तो बार-बार आप कल्पना में गोते लगाने पर मजबूर हो सकते हैं। उन तमाम चीजों को पढ़ते हुए बिलकुल नॉस्टैल्जिया सा फील होता है, जो कभी न कभी आपने भी देखी या सुनी हैं। आप पूर्वांचल से हैं तो किताब आपको अपनी कहानी भी लग सकती है। आप पूरी तरह से शहरी हैं तो यह किताब बलिया की ‘बग़ावत’ को कुछ हद तक समझा भी सकती है।

किताब में मुगल हैं तो नरेंद्र मोदी भी हैं, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किताब के ‘राजनीतिक’ होने के चांस कितने ज्यादा हैं। बाकायदा मसालेदार किताब होने के बावजूद मैं इतना जरूर कहना चाहूंगा कि यह कहानी किताब की कम फिल्म की ज्यादा है। भविष्य में ऐसी किताबों पर फिल्म ब

सियासी मीयर की रिपोर्ट